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________________ १६३ सप्तमं धर्मभेदद्वारम् अक्का जंपइ जइ तुह, एस गहो दो वि ता परिक्खामि । उल्लवइ देवदत्ता, जुत्तं वुत्तं तए माय ! ॥१११।। अह तप्परिक्खहेडं, अक्का पेसेइ अयलपासम्मि । उच्छृण कए दासिं, सा साहइ तस्स गंतूणं ॥११२।। सो तक्खणेण उच्छ्रण, भारए गिन्हिऊण मुल्लेण । भरिऊण सगडमेगं, पट्ठावइ देवदत्ताए ॥११३॥ तं गिहपत्तं दटुं , तुट्ठा अक्का भणेइ हे पुत्ति ! । पिक्खसु दाणाइसयं, अयलं अयलस्स नियपइणो ॥११४|| पडिभणइ देवदत्ता, किमहं महिसी करेणुया अहवा । जेण समूलसडालो, उच्छूपुंजु त्ति पट्ठविओ ॥११५॥ अह मूलदेवपासे, अक्का उच्छूण पेसए दासिं । तब्भणिओ सो वि लहुं , जूयं मुत्तूण उढेइ ॥११६।। जूयज्जियदव्वेणं, परिक्खिउं इक्खुलट्ठिओ सरसा । पण सत्त गिन्हिऊणं, मूलग्गे अवणए तेसिं ॥११७॥ अह तच्छिऊण छुरियाइ, छद्दिऊणं च कठिणगंठिओ । रसकुंडाणि व खंडाई, कुणइ दोअंगुलमियाई ॥११८॥ तो चाउज्जाएणं, सम्मीसिय रसविसेसजणगेण । घणसारेणं परिमल-सारेणं देइ अहिवासं ॥११९।। अकरप्फरिसं गहिउं, खंडाई पोइऊण सूलासु । अहिणवसरावपुडए, खिविउं पेसेइ दासिकरे ॥१२०।। अह ता. देवदत्ता, पिक्खिय दंसेइ जंपइ य अक्कं । अंबे ! दिट्ठ एयं, दुन्हं पि हु अंतरमिमेसि ॥१२१॥ तो अक्का तुन्हिक्का, थक्का कोवानलेण पजलंती । पिक्खइ छिद्दाइं इओ, अणुदियहं मूलदेवस्स ॥१२२॥ अन्नमि दिणे अक्का, एगंते भणइ अयलसत्थाहं । मज्झ सुया तुह भज्जा, नेहो पुण मूलदेवम्मि ॥१२३॥ 15 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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