SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५९ 10 सप्तमं धर्मभेदद्वारम् एयस्स जओ मुत्ती वि, पयडए विमलगुणगणाइसयं । अह तेण सह वियारो, भरहरहस्सम्मि आरद्धो ॥५९।। तं वामणरूवधरं, नट्टगुरू पिक्खिऊण गविट्ठो । देइ दुतिवारपुट्ठो, उत्तरमित्तं अवन्नाए ॥६०॥ चिंतेइ मूलदेवो, एसो पंडिच्चगव्वमुव्वहइ । तो भरहस्स वियारं, अइनिउणं पुच्छिओ किं पि ॥६१॥ तत्तो नट्टायरिओ, तं अमुणंतो निरुत्तरो जाओ । आरब्भकक्कसंकंति-दिवसओ दिवसनाहु व्व ॥६२॥ अह लज्जोणयवयणो, वेला नट्टस्स वट्टइ इयाणि । ता जामि त्ति भणंतो, नट्टायरिआ गओ सगिहं ॥६३॥ तो मूलदेवकुमारो, पुट्ठो वेसाइ भरहसंदेहे । सो तक्खणेण तीसे, कहिओ अवणेइ सव्वे वि ॥६४॥ अह लक्खपागतिल्लं, गहिऊण अंगमद्दओ ढुक्को । मद्दणकिरियं काउं, वेसाए देवदत्ताए ॥६५॥ अह आह मूलदेवो, अहं करिस्सामि मद्दणं भद्दे ! । तीए भणियं सुंदर ! किं तुममेवं पि जाणेसि ॥६६॥ स भणह न मुणेमि परं, वसिओ हं जाणगाण पासम्मि । तज्जाणगत्तामिह पुण, किरियाए चेव जाणेसि ॥६७।। अह तं सो भदंतो, अब्भंगियतिलअद्धपलमेगं । तदेहम्मि पवेसइ, लोमाहारं व लोमेहिं ॥६८॥ ताव कए देहठियं, तिल्लं मा हवउ इय तदंगाओ । तं सव्वं आगारिसइ, पस्सेयं तवणतावु व्व ॥६९॥ चिंतेइ देवदत्ता, तस्स कलापगरिसेण हयहियया । किं नीसेसकलाणं, एस गुरू आइमो को वि ॥७०॥ इय चिंतिउण वेसा, देवस्स व तस्स पडिय पाअसु । एगंतं कारविउं, कयंजली भणइ नेहेण ॥७१।। 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy