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षष्ठं धर्मदानयोग्यद्वारम्
तो तत्थ वंकचूली, वज्जिरनिस्साणतूररवगज्जो । विलसिरसरधाराहिं, मेहो इव वरिसिउं लग्गो ।।२५९॥ अह तेण झत्ति तइया, सरसब्बलसावलोहनिवहेहिं । न गओ न हओ न भडो, न रहो समरे न जो भिन्नो ॥२६०॥ पवणेण व घणपडलं, महिसेण व सरवरं खणेणावि । आलोडियं तहा से रिउणो सिन्नं जह पलाणं ॥२६१॥ कामरुयदेसनाहं, मारेउं वंकचूलिणा तत्थ । तक्खग्गघायविहुरिय-देहेणं लूडिओ देसो ॥२६२॥ तत्तो उज्जेणीए , पत्तो बलिऊण लद्धजयसद्दो । अह जियसत्तुनरिंदो, घायाणं कारइ चिकिच्छं ॥२६३।। विज्जोवइट्ठबहुविह-ओसहनिवहेहि रोहपत्ता वि । दुज्जणपडिवन्नं पिव, पुणो वि घाया समुल्लसिया ॥२६४।। तो जियसत्तू जंपइ, विज्जे भो किं पि ओसहमिमस्स । तं कुणह जेण एसो, पुणन्नवो होइ अचिरेण ॥२६५॥ अह ते वि निउणबुद्धीइ, विज्जसत्थाई चिंतिउ तस्स । अक्खंति कागमंसस्स, भक्खणं नरवइसमक्खं ॥२६६।। अह भणइ वंकचूली, नियनियमं अक्खिऊण ते विज्जे । पाणच्चाए वि न कागमंसमुव जइस्सामि ॥२६७॥ भुंजामि विसं हाला-हलं पि पविसामि जलिरजलणम्मि । नियसव्वस्सं व पुणो, नियममिमं नो चइस्सामि ॥२६८॥ जिणदासेणं भणिओ, जइ पुण गिन्हेइ ओसहं एयं । इय चिंतिऊण रन्ना, गामाओ सो समाहविओ ॥२६९॥ अह सो वि पहे इंतो, पिक्खइ देवीउ दो रुयंतीओ । पुच्छइ य कीस तुब्भे, रोयह ? ताओ वि जंपंति ॥२७०।। चुयनाहाणं सोहम्म-कप्पवासीण अम्हदेवीणं । मरिऊण वंकचूली, अभुत्तमंसो हवइ नाहो ॥२७१।।
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