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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् अग्घाइऊण गंधे, एए जो पियइ सीयलं सलिलं । भुंजइ मणुन्नभुज्जं, वरखाइमसाइमं च तहा ॥२९४॥ जिंघइ सुगंधिगंधे, सुमणसकप्पूरपभिइए सव्वे । पिक्खइ मणोहराइं, रूवाइं चित्तभित्तीसु ॥२९५॥ वीणावेणुरवढं, मणुन्नगीयाइयं निसामेइ । महिलातूलीउस्सीसगाइ, फासेइ सेवइ य ॥२९६॥ किं बहुणा पंचण्ह वि, विसयाणमणोहरं च जं विसयं । भुंजइ सो जमगेहं, वच्चइ नत्थि त्थ संदेहो ॥२९७॥ विहियसिरतुंडमुंडण-वेसो पंतासणाइकयवित्ती । साहु व्व चिट्ठई जई, ता जीवइ अन्नहा नेव ॥२९८॥ इय तत्थ वाइऊणं, चिंतइ मंती सुबंधुनामो सो । धिद्धी मह बुद्धीए , मुएण जो मारिओ तेण ॥२९९।। मइ माहप्पं सु च्चि, चाणक्को धरउ जीवलोगम्मि । जेण मुएण वि अहयं, जियंतमयगो वि णिम्मविओ ॥३००॥ इय चिंतिऊण तत्तो, कारियासिरतुंडमुण्डणाईयं । जीवियलुद्धो अहियं, सो चिट्ठइ साहुकिरियाए ॥३०१॥ अह बिंदुसारदेवीइ, पुहइतिलयाइ नंदणो जाओ । नामेण असोगसिरी, असोगदलरत्तकरचरणो ॥३०२।। कालेण कलाकलिओ, जुवराजपए निवेसिओ पिऊणा । तम्मि विवन्ने सो अह, रज्जं पालेइ नीईए ॥३०३॥ तस्स वि असोगसिरिणो, पुत्तो जाओ कुणालनामेण । उवरयजणणीओ सो, ठविओ बालो वि जुवराओ ॥३०४॥ सावक्कयमायाए , भएण वरमंतिपरियणसमेओ । दाऊणं उज्जेणिं, कुमारभुत्तीइ पट्ठविओ ॥३०५॥ तत्थ य नेहवसेणं, असोयसिरिपत्थिवो अमच्चस्स । लेहे सहत्थलिहिए , पेसइ कज्जेसु अन्नदिणे ॥३०६॥
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