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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् दुट्टकयं जं सचिवो, परिभूओ एयसंतिया तुज्झ । पाणा रज्जं च तओ, से कहिओ पुव्ववुत्तंतो ॥२६८॥ तं नाऊणं राया, गंतुं चाणक्कपासमल्लीणो । पभणइ ममावराहं, खमिऊणं होसु सुपसन्नो ॥२६९।। जइ वि मइमोहगहिला, बालागुरुएसु अविणयमुर्विति । तह वि न कुप्पंति जओ, दुज्जायं होइ न दुमाया ॥२७०॥ चाणक्को भणइ मए, परिचत्तं सव्वमणसणं गहियं । ता वच्छ ! गच्छ गेहं, परलोयहिए पयट्टो हं ॥२७१।। तो बिंदसारराया, खामेउ सपरियणो गिहं पत्तो । चिंतइ सुबंधुनामो, जइ अज्ज वि चलइ चाणक्को ॥२७२।। ता निक्कंदेइ ममं, इय चिंतिय भणइ कवडओ निवइं । तुह अणुमईइ सामिय !, करेमि चाणक्कपूयमहं ॥२७३।। होउ इमं ति अणुमए , गतुं संझाइ कुणइ तप्पूयं । उग्गाहियं च धूवं, कारीसे खिवइ इंगालं ॥२७४॥ मायाइ पणमिऊण य, गओ स गेहम्मि तेण जलणेण । दझंतो चाणक्को, इय चितंतो सहइ सम्मं ॥२७५।। "देहं असुइदुगंधं, भरियं मलमुत्तपित्तरुहिराण । रे जीव ! इमस्सुवरिं, पडिबंधं मा तुमं कुणसु ॥२७६॥ पुन्नं पावं च दुगं, वच्चइ जीवेण सह सया एयं । जं पुण इमं सरीरं, तं न चलइ कह वि ठाणाओ ॥२७७॥ तिरियत्तणम्मि बहुसो, पत्ताइ तुमे अणेगदुक्खाई। तो ताई सुमरंतो, सहसुइमं वेयणं जीव ! ॥२७॥ नरयम्मि जीव ! तुमए, नाणादुक्काइँ जाइँ सहियाइं । इन्हिं ताइँ सरंतो, अहियाससु वेयणं एयं ॥२७९॥ इक्को जायइ जीवो, मरेइ इक्को भवम्मि तह भमइ । कम्माइ खवइ इक्को, इक्कु च्चिय पावए सिद्धि ॥२८०॥
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