________________
१११
पञ्चमं सद्धर्मदायकद्वारम्
तेण य गलियं तं लोयणाण, सिद्धंजणं तओ दिट्ठा । उभओ पासे रन्नो, उवविट्ठा चिल्लया दो वि ॥२२९॥ दट्ठण चंदगुत्तो, पभणइ विट्टालिओ अहमिमेहिं । इय जाओ दुट्ठमणो, तं पिक्खिय भणइ चाणको ॥२३०॥ रे ! किं वि मणोजाओ, अज्जं चिय तं सि नूण सुद्धप्पा । बालकुमारजईहि, सह भुतो जं सि एगत्थ ॥२३१॥ को साहूहिं सद्धिं, भुत्तं पावेइ एगथालम्मि । ता तं चिय सुकयत्थो, सुलद्धमिह जीवियं तुज्झ ॥२३२॥ एए च्चिय सुकयत्था, जियलोए उज्झिऊण जे भोए । बालत्ते निक्खंता, जिणिदधम्मे जओ भणियं ॥२३३॥ "धन्नाउ बालमुणिणो, बालत्तणयम्मि गहियसामन्ना । अणरसियनिव्विसेसा, जेहिँ न नाओ पियविओगो" ॥२३४॥[ ] एवं स चंदगुत्तं, अणुसासिय चिल्लए विसज्जेइ । तो गंतूण गुरूणं, सोवालंभं कहइ एवं ॥२३५॥ जइ तुह सीसा वि इमं, करंति ता सोहणं किमन्नत्थ । ता वारिज्जसु एए , इय भणिए जंपए सूरी ॥२३६॥ भद्दय ! हवेसि सड्ढो, नामेणं चेव न उण चरिएण । जं एसि चिल्लयाणं, दुन्हं पि न देसि आहारं ॥२३७॥ एएणं चिय अन्नत्थ, पेसिया साहुणो मए सव्वे । एए पुण वलिऊणं, समागया मज्झ नेहेण ॥२३८।। ता भद्द ! तुज्झ इत्तिय-पावारंभस्स किं फल अन्नं । जइ एरिसदुक्काले, न देसि दाणं मुणीण जओ ॥२३९॥ "विणए सीसपरिक्खा, सुहडपरिक्खा य होइ संगामे । वसणे मित्तपरिक्खा, दाणपरिक्खा य दुक्काले ॥२४०॥ किं सो वि गिही भन्नइ, जो साहूणं अदिन्नदाणो वि । भुंजइ गेहम्मि जओ, नियउयरं भरड़ काओ वि" ॥२४१॥
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org