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श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
तो नियअवमाणविसं, मुंच पिए! रिद्धिअमयजोगेण । अह तीइ पिया निसुणइ, चाणक्कं गहियरज्जं ति ॥ १९०॥ तो स कुडुंबो पत्तो, चाणक्कं खामिऊण तोसेइ । सो उवसंतो तेसिं, जहारिहं कुणइ सम्माणं ॥१९१॥ अह वच्चंते काले, चाणक्को चंदगुत्तनिवरज्जं । खग्गं च कोसहीणं, पिक्खिय चिंतइ विणस्सेही ॥१९२॥ तो कोसपूरणकए, उवायमेगं करेइ चाणक्को । दीणारपुन्नथालं, थावइ पुरिसं च तस्स तडे ॥ १९३॥ वरदिन्नपासयकरो, सो पुरिसो भणइ जो ममं जिणइ । सो लेउ थालमेयं, जित्तो मे देउ दीणारं ॥ १९४॥ चाणक्केणं चितिय-मेवं कोसो पभूयकाले । पूरिज्जइ ता अन्नं, इत्थ उवायं करेमि अहं ॥ १९५॥ पाएमि पवरमज्जं, रिद्धिसमिद्धे कुटुंबिए सव्वे । जेण नियगेहलच्छी, सब्भावं मे कहंति जओ ॥१९६॥ कुवियस्स आउरस्स य, वसणं पत्तस्स रागपत्तस्स । मत्तस्स मरंतस्स य, सब्भावा पायडा हुंति ॥१९७॥ इय निच्छिय चाणक्को, आहविय कुटुंबिए नियावासे । भुंजाविऊण पायइ, ते मज्जं अप्पणो न पुणो ॥१९८॥ तो गाणहसणनच्चण - पमुहं उक्खित्तचिट्ठियं नाउं । चाणक्को तम्मज्झे, तालं दाऊण इय भइ ॥ १९९ ॥ " तो धाउरत्तवत्थे, कंचणमयकुंडिया तिदंडं च । नरनाहो वसवत्ती, होलं वाएह मे इत्थ ॥ २००॥ तत्तो होलावज्जे, पवाइए कोलिएहिँ मत्तेहिं । उक्खित्तकरो एगो, कुंडुंबिओ भणइ उच्चसरं ||२०१॥ जोयणसहस्सगमणे, हत्थिस्स पए पयंमि लीलाए । पूरेमि कणयलक्खं, होलं वाएह मे इत्थ ॥ २०२॥
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