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पञ्चमं सद्धर्मदायकद्वारम्
भो ! भो ! एरिसलग्गे, इंदस्स कुमारियाउ एयाओ । इह ठाणे ठवियाओ, न फिट्टई रोहओ जेण ॥१५१॥ लक्खणमाणेण मए , नायमिमं पच्चओ य इह एसो । अवणिताण य तुम्हं, ओसरिही रोहओ किं चि ॥१५२॥ अवणिति जाव ते वि हु, ओसारइ ताव रोहयं किं चि । तो दिट्ठपच्चएणं, जणेण कूवो कओ तत्थ ॥१५३।। अह चलिऊणं बंणं(?) वि, तं पुरं गिण्हिउं य सव्वस्सं । पत्ता पाडलिपुत्तं, चउद्दिसिं रोहिउं रहिया ॥१५४॥ नंदो वि पइदिणं चिय, तेहिं समं कुणइ गुरुयसंगामं । वच्चंतेहिँ दिणेहिं, तुट्टबलो सो उवक्खीणो ॥१५५॥ तत्तो धम्मदुवारा, मग्गेई हंतकारमिव विप्पो । दिन्नं चाणक्केणं, जं एसा नरवराण ठिई ॥१५६॥ नंदस्स उवालंभं, चाणको दावए अहो तुमए । तइया न किं पि दिन्नं, मज्झ विणा अद्धचंदं ति ॥१५७॥ इन्हि च मए दिन्नं, तुज्झ इमं जासु एगरहचडिओ। जं सक्कसि तं गिन्हिय, इय सोउं चिंतए नंदो ॥१५८॥ विहडेइ सुघडियं पि हु , संघडए विहडियं पि कज्जमिह । संघडणविहडणा वावडेण, विहिणा जणो नडिओ ॥१५९॥ अह विसकन्नं एगं, रूववई मुंचए नियावासे । एयं विवाहिऊणं, मरिस्सई चंदगुत्तु त्ति ॥१६०॥ तत्तो भज्जाजुयलं, कन्नं एगं च साररयणाणि । संठाविऊण रहे, सेसं गहिऊण सो चलिओ ॥१६१॥ अह रहचडिया कन्ना, पिक्खइ पविसंतचंदगुत्तमुहं । नंदेण तओ भणिया, पावे ! सत्तुम्मि अणुरत्ता ॥१६२॥ मह रज्जजीवियहरं, मममिव एवं कहन्नु पत्थेसि । ता गच्छसु त्ति भणिउं, रहाउ उत्तारिउं मुक्का ॥१६३।।
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