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श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
इह मयधरधूयाए , संजाओ चंदपियणडोहलओ । तस्स असंपत्ताए, सा चिट्ठइ कंठगयपाणा ॥८६॥ ता काऊण पसायं, माणुसभिक्खं पयच्छ अम्हाणं । सुकुलुब्भवाण जम्हा, न हु जुज्जइ पत्थणाभंगो ॥८७॥ होयव्वमित्थ गब्भे मम वंछियपूरणे समत्थेण । केणावि सुपुरिसेणं ति, चिंतिउं भणइ चाणक्को ॥८८।। जइ मह गब्भं अप्पह, तो हं पूरेमि दोहलमिमीए । पडिवन्नं तेहिँ जओ, बहुगब्भा जीवमाणीए ॥८९॥ अह सक्खिणो विहेडं, करेइ पडमंडवं सछिदं सो । तो पुन्निमरयणीए , नहयलमज्झथिए चंदे ॥९०॥ ठविऊण तस्स हिट्ठा, मणुन्नरसखीरपूरियं थालं । पडिबिंबियम्मि चंदे , सा भणिया पुत्ति ! आगच्छ ॥९१॥ तुज्झ निमित्तेण मए , चंदो आगरिसिऊण मंतेणं । इह आणीओ ता पियसु , पुत्ति ! एयं जहिच्छाए ॥९२॥ चंदं ति मन्नमाणी, जह जह सा सहरिसं पियइ खीरं । तह तह निउत्तपुरिसो, पच्छायइ उवरि पडछिदं ॥९३।। चंदम्मि अद्धपीए , पुन्नो गब्भो हविस्सइ न वि त्ति । मुणिउं सा तेणुत्ता सेसो दिज्जउ जणाण इमो ॥९४॥ सा निच्छइ तो भणियं, जइ एवं ता पिएसु सव्वं पि । लोयत्थं ससिमन्नं, आणिस्सं निययसत्तीए ॥९५।। इय दोहलयं पूरिय, चाणक्को दव्वअज्जणनिमित्तं । कहिऊण तेसि वत्तं, संचलिओ धाउविवरेसु ॥१६॥ अह संपुन्नदिणा सा, पुत्तं पसवेइ सुहमुहुत्तम्मि । से चंददोहलाओ, नाम कयं चंदगुत्तु त्ति ॥९७॥ चाणक्को वि भमंतो, उवज्जए धाउवायजोगेहिं । बहुयं दव्वं तत्तो, वलिउं तत्थेव संपत्तो ॥९८॥
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