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Jain Education International 2010_02
श्रीधर्मविधिप्रकरणम
कन्नकडुयं पि वयणं, घिप्पड़ अमयं व धणसमिद्धस्स । न उणो तं सयकला-कलावकलियस्स अधणस्स ॥६०॥ जस्सत्थो तस्स जणो, जस्सत्थो तस्स बंधवा बहवे । धणरहिओ वि मणुस्सी, होइ समो दासपेसेहिं ॥ ६१ ॥ इंतीए इंति अणहुतया वि, जंतीइ जंति संता वि । जीईइ समं नीसेस - गुणगणा जयउ सा लच्छी ॥६२॥ ता सव्वा वि इन्हि, अज्जेयव्वो मए फुडं अत्थो । चिट्ठइ य पाडलिपुरे, नयरे नंदो महाराया ॥६३॥ सो देइ बंभणाणं, सुवन्नदाणं ति चितिउं हियए । धरणीइ कहिय चलिओ, संपत्तो पाडलिपुरम्मि ॥६४॥ रायकुलम्म पविट्ठो, कह वि पमत्ताण दारवालाण । अत्थाणम्मिय नंदस्स, आसणे झत्तियासीणो ॥६५॥ इत्तो य न्हायसयला-लंकारविभूसिओ सयं राया । नेमित्तियाइ सहिओ, समागओ तत्थ अत्थाणे ||६६ || चाणक्कं दट्ठूणं, जंपइ नेमित्तिओ जहा देव ! | एसो तम्म मुहुत्ते, उवविट्ठो आसणे तुम्ह ॥६७॥ जंमि सिरिनंदवंसस्स, छायमवहीरिऊण चिट्ठेइ । ता एस जह न कुप्पइ, तह सविणयमुट्ठवेयव्वो ॥६८॥ तो रायणा दवाविय, आसणमन्नं भणाविओ एवं । मुंच निवासणमेयं, पसिउं एयम्मि उवविससु ॥६९॥ अह चिंतइ चाणक्को, तमजुत्तं आसणे अदिन्ने जं । उवविट्ठो एवं पुण, सव्वजहन्नं जमुट्ठेमि ॥ ७० ॥ इय चिंतिऊण पभणइ, ठाइस्सइ मज्झ कुंडिय इत्थ । मुंचइ य तत्थ तत्तो, निवई दावेइ अन्नयरं ॥ ७१ ॥ तत्थ तिदंडं ठावइ, जन्नोवइयं ठवेइ अन्नम्मि । इय जं जं ठाविज्जइ, तं तं रुंधेइ चाणक्को ॥७२॥
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