________________
10
श्रीधर्मविधिप्रकरणम् जाया से दो सीसा, सिरिअज्झमहागिरी सुहत्थी य । नासियनीसेसतमो, दिणयरचंद व्व जियलोए ॥८॥ नियगुरुणा दुन्हं पि हु, दिन्नेसु वि जुयजुएसु गच्छेसु । ते राम-लक्खणा इव, समगं विहरंति पीईए ॥९॥ अह अन्नया कया वि हु, नयरिं कोसंबियं समणुपत्ता । तत्थ लहुवसइवसओ, दो वि ठिया भिन्नवसहीसु ॥१०॥ तत्थ य महंतदुब्भिक्खदुक्खिया, टलवलंति भिक्खयरा । जह गिम्हसुसियसरसलिल-विहुरिया जलयरसमूहा ॥११॥ सिरिअज्जसुहत्थीणं, मुणिणो धणसत्थवाहगेहम्मि । भिक्खट्ठाइ पविठ्ठा, अह सहसा तेण दिट्ठा य ॥१२॥ अब्भुट्ठिओ तओ सा, सपरियणो वंदिउं भणइ भज्ज । आणेस विविहपक्कन्न-माइयं फासुयाहारं ॥१३॥ तीए तह त्ति विहिए, विसुद्धसद्धाइ सत्थवाहेण । पडिलाभेउं मुणिणो, गिहदारं जावणुव्वइया ॥१४॥ एयं सव्वं दिटुं, भिक्खट्ठमुवागएण एगेण । दमगेण तओ तुट्ठो, मणम्मि सो चिंतए एवं ॥१५॥ धन्ना अहो ! कयत्था, एइ च्चिय इत्थ जीवलोगम्मि । एवंविहेहिं एवं-भत्तीए जे नमिजंति ।।१६।। नरलोयदुल्लहाणि य, विविहपयाराणि भक्खभुज्जाणि । पज्जत्तीए अहियं, लहंति दुब्भिक्खकाले वि ॥१७॥ अहयं पुणो अधन्नो, कयसणगासप्पमाणमित्तं पि । न य उवलभामि कत्थ वि, अइबहुललिं कुणतो वि ॥१८॥ ता एइ च्चिय मुणिणो, आहाराओ जहिच्छलद्धाओ । मग्गामि किंचि मत्तं, करुणाए दिति जइ कह वि ॥१९॥ इय चिंतिऊण तेणं, मुणिणो मग्गम्मि मग्गिया भत्तं । ते बिंति इमस्स पहू , गुरुणो ता ति च्चिय मुणंति ॥२०॥
20
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org