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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् अह तत्थ बहू लोओ, वावीए आगओ पयंपेइ । धन्नो स नंदसेट्ठी, जेणेसा कारिया वावी ॥१६२॥ तम्मि मए वि हु अज्ज वि, नंदइ नंदु त्ति नाम जियलोए । जेण ससिकुंदधवला तहेव, कित्ती परिप्फुरइ ॥१६३॥ इय तत्थ नंदवन्नण-वयणाई जंपियाइँ लोएण । सोऊण दद्दुरो सो, हिययम्मि विभावए एवं ॥१६४।। "किं कथ वि निसुयमिमं, पुव्वं पि मइ त्ति चिंतयंतस्स । सुहपरिणामवसेणं, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥१६५॥ समरइ नियपुव्वभवं, जं रायगिहम्मि नंदसिट्ठी हं । सिरिवीरजिणसयासे, तइया पडिवन्नगिहिधम्मो ॥१६६।। ता नियकुवियप्पाओ, मिच्छत्तगएण कारिया वावी । हीही भग्गपइन्नो, गिहिधम्माओ पभट्ठो हं ॥१६७॥ तं दव्विलसियमेयं, जमहं मरिऊण दद्दरो जाओ। नियमइकप्पियधम्मा, कह वा सुगई लहंति जओ ॥१६८॥ नियगमइविगप्पियचिंतिएण, सच्छंदबुद्धिरइएण । कत्तो पारत्तहियं, कीरइ गुरुअणुवएसेणं ॥१६९॥ तइया तन्हाइदुहं, अहियं हिययम्मि भाविऊण मए । वावी धम्मच्छलओ, पावट्ठाणं इमं विहियं ॥१७०॥ इत्थ य अणुदियहं पि हु, अणेगजीवाण होइ संहारो । जिणधम्मस्स तरुस्स व, मूलं पुण पभणिया करुणा ॥१७१॥ ता मे जुज्जइ इन्हि पि, गिन्हिउं पुव्वगहियगिहिधम्मं । जं भुत्ताइ इमाइं, जिणवयणुल्लंघणफलाइं, ॥१७२॥ इय पच्छुत्तावेणं, स दहुरो जलनिमग्गदेहो वि । मन्नेई अप्पाणं, जलिरानलकुंडखित्तं व्व ॥१७३॥ अह सिरवीरं सुमरिय, स दडुरो अंतरंगरंगेणं । पडिवज्जइ गिहिधम्मं, पुव्वं पडिवन्ननीईए ॥१७४॥
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