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________________ 5 10 15 20 25 ८६ Jain Education International 2010_02 श्रीधर्मविधिप्रकरणम् अह पच्छिमवणसंडे, सो कारइ विज्जुसालमइरम्मं । तत्थ य पोसेइ सया, बहुविज्जे मंतिकुसले य ॥१३६॥ ते वाहिविहुरियाणं, जणाण निच्चं कुणंति तेगिच्छं । सिट्ठिनिउत्ता य नरा, ओसहपत्थाइ पूरंति ॥ १३७॥ अह उत्तरवणसंडे, नंदोऽलंकारसालमइविउलं । कारेइ तहा दप्पण - पंतीओ तत्थ थंभेसु ॥ १३८॥ मणुया य तत्थ बहवे, सिट्ठिनिउत्ता कुणंति लोयाण । बलियाण दुब्बलाण य, सया वि देहस्स सुस्सूसं ॥१३९॥ अह तत्थ जणा बहवे, कीलंति जले नियंति नट्टाई । भक्खंति तरुफलाई, सत्तागारेसु य जिमंति ॥१४०॥ अंदोलएहिँ खिल्लंति, इंति चडिऊण विविहजाणेसु । अप्पाणमलंकारिंति, हरिसिया मुक्कआसंका ॥१४१॥ एवं गया पसिद्धिं सा रायगिहम्मि नंदवाविति । दूरनिवासी वि जणो, आगच्छइ तं निरिक्खेडं ॥१४२॥ जंपेइ य अन्नुन्नं, धन्नो संपुनपुन्नभंडारो । नंदमणियारसिट्ठी, दीसइ जस्सेरिसा वावी ॥ १४३॥ एयस्स चेव भुवणे, सहलाई जम्मजीवियधणाई । जेण असारधणाओ, उवज्जिया सासया कित्ती ॥१४४॥ इच्चाइ जणपसंसं, सोउं सवणेहिँ नंदमणियारो । विहसेई अच्चतं, धारापहओ कयंबु व्व ॥ १४५॥ इय वट्टंते काले, अन्नदिणे नंदसेट्ठिो देहे । सव्वंगदुक्खजणगा, जाया सोलस इमे रोगा ॥ १४६॥ जर १ का २ सास ३ दाहा ४, अत्थी ५ कन्नाणवेयणा ६ अरिसा ७ । कंडू ८ कोढ ९ जलोयर १०सिर ११ कुच्छी १२ दिट्ठिसूलाई १३ ॥१४७॥ अंगारओ १४ अजिन्नं १५, भगंदरो १६ तह य होइ सोलसमो । एएहिं रोहिं, सो अच्वंतं समभिभूओ ॥ १४८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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