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श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
ति च्चिय सुलद्धविहवा, सत्तागारेसु जेसि दाणाई ।
ति अणुदिप हु, पहियाणं छुहियतिसियाणं ॥ ११०॥ ति च्चिय कयकिच्चा जे, पहतीरे तरुवरे य रोवंति । जेसिं छायाअमियं, पियइ जणो तत्तपरिसंतो ॥ १११ ॥ जीवदया मूले वि हु, जिणधम्मे दूसणं इमं चेव । जं किज्जंति न विउला, जलासया सयलजंतुहिया ॥ ११२ ॥ ता कल्ले गंतूणं, नरवइणो सेणियस्स पासम्मि । कत्थ वि नगरासन्ने, भूखंडं किं पि मग्गिस्सं ॥ ११३॥ तो कारिस्सामि तर्हि, एगं वाविं अणेगजंतुहियं । जेण मए विन्नायं, तन्हादुहमेरिसं अहुणा " ॥ ११४॥ इय निच्छिऊण हियए, बीयदिणे पोसहं च पारेउं । गंतूण गिहं सिट्ठी, न्हाऊणं पारणं कुणइ ॥ ११५ ॥ तत्तो नियसयणजुओ, निवजुग्गमुवायणं गहेऊण । पत्तो सेणियपासे, नमिऊण विन्नवइ एवं ॥ ११६॥ देव ! तवाएसेणं, काराविस्सामि वाविमेगमहं । ता मज्झ बंभणस्स व तज्जुग्गं देसु भूखंडं ॥११७॥ अह सेणिएण रन्ना, आहविउं वत्थुपाढगा भणिया । वाविक सुहभूमि, दंसेइ रूईइ सिट्ठिस्स ॥११८॥ तो रायासेणं, बाहिं नयरस्स ते समागंतुं । ईसाणे सुहठाणे, भूमिं दंसंति सिट्ठिस्स ॥ ११९ ॥ सेट्ठी वितम्मि ठाणे, खणगे हक्कारिऊणं सुहदियहे । काउं बलिकम्माई, कारावइ खणणआरंभं ॥१२०॥ अह सा थोवदिणेहिं, खणिया वावी जलं च नीहरियं । चउकोणा समतीरा, पाहणबद्धा य निम्मविया ॥ १२१ ॥
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सुविदिसासु तीसे, विहियाइँ बलाणयाइँ चत्तारि । जाइँ चलधयकरेहिं, तिसियजणं आहवंति व्व ॥ १२२॥
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