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कुसुमपूजायां कथा ॥
संचलिया ससुरगिहं सहिया नियपल्लवीइ दासीए । पइपरियणपरियरिया संपत्ता भेत्तुणो गेहं ॥६॥ जा चिट्ठइ ससुरगिहे ता पिच्छइ सा कयाइ जिणबिंबं । वरमालइ मालाए समच्चियं नियसवक्कीए ॥७॥ अइगुरुयमच्छराए अणाइमिच्छत्तमोहियमणाए । भणिया लीलावईए कुवियाए अत्तणो दासी ।।८।। घित्तूण इमं मालं बाहिं नेऊण खिवसु वाडीए । डझंति लोयणाई मह मालं पिच्छमाणीए ॥९॥ तीइ वयणाओ दासी पुरओ जा जाइ जिणवरिंदस्स । ता पिच्छइ भयभीया तं मालं सप्परूवेणं ॥१०॥* जाव न निवडइ माला हत्थाओ देवयाणुभावेण । विसहररूवेण ठिया ता विलवइ उच्चसद्देण ॥११॥ तं विलवंतिं सोउं समागओ तत्थ पुरवरीलोओ । चिट्ठइ सा सविलक्खा खिसिज्जंती पुरजणेण ॥१२॥ इत्तो तीइ संवक्की समागया विगयमच्छरसहावा । निच्चलसम्मत्तमई सुसाविया जिणमई नाम ॥१३॥ तं दट्ठण रुयंती करुणाए सुमरिऊण नवकारं । गहिया य जिणमईए सा माला तीइ हत्थाओ ॥१४॥
१. धाईइ बीय । २. भत्तणो । ३. अच्छइ । ४. सवत्तीए । ५. मच्छराइए । ६. बाहे । ७. सप्परूपेणं । ८. ट्ठिया । ९. बहुदुक्खा । १०. सविक्की । ११. निम्मल । १२. समरिऊण ।
★ प्रत्यन्तरे दशमं श्लोकं पश्चाद् एतत् श्लोकमस्तिजाव न गिन्हइ दासी पुणो पुणो सामिणीइ भणिया वि । ता चित्तूणं सयं चिय सा मालं निग्गया बाहिं ॥११ ॥
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