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________________ ४. कुसुमपूजायां कथा ॥ पुज्जइ जो जिणचंदं तिन्नि वि संज्झाउ पवरकुसुमेहिं । सो पावइ सुरसुक्खं कमेण मुक्खं सया सुक्खं ॥१॥ जह उत्तमकुसुमेहिं पूअं काऊण वीयरागस्स । संपत्ता वणियसुआ सुरवरसुक्खं च मुक्खं च ॥२॥ अत्थि त्थ भरहवासे उतरमहुरापुरी य जयसिट्ठि । भज्जा से सिरिमाला धूया लीलावई नाम ॥३॥ भाया तीई कणिट्ठो मणइट्ठो गुणधरु त्ति नामेण । दुन्न वि सहोयराइं विभूसणं सिट्ठिगेहस्स ॥४॥ सा अन्नया कयाई दाहिणमहुराइ सिद्रुितणएण । मयरद्धयपुत्तेणं परिणीया विणयदत्तेण ॥५॥ - १. पूयइ । २. वरसुक्खं । ३. वीयरागाणं । ४. उज्जाणगएण । ५. विद्धणं । ★ प्रत्यन्तरे द्वितीयतमं श्लोकं पश्चात् इमे द्वे श्लोके स्तः - अत्थि त्थ भरहवासे उत्तरमहुराउरीउ सुपसिद्धा । राया वि य सुपसिद्धो उ नामेणं सूरदेवु ति ॥ ३ ॥ तत्थ य धणवइ नामो सिट्ठी परिवसइ संपया कलिओ । भज्जा से सिरिमाला धूआ लीलावइ नाम ॥४॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002557
Book TitleVijaychandchariyam
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages218
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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