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विजयचंदचरियं भुंजइ इच्छियसुक्खं संतुट्ठा देइ इच्छियं दाणं । रुट्ठा पुण सा जेसिं ताणं च विणिग्गहं कुणइ ॥३८।। अह अन्नदिणे पुट्ठा तीए परिवाइया इमा देवी । वच्छे तुह संपन्ना मणोरहा इच्छिया जे उ ।।३९॥ भयवइ तं नत्थि जए तुह पयभत्ताण जं न संभवइ । तह वि हु भयवइ अज्ज वि हिययं दोलायए मज्झ ॥४०॥ जह जीवइ मह जीवंतियाइ अह मरइ मह मरंतीए । जा जाणिज्जइ नेहो मह उवरिं नरवरिंदस्स ॥४१॥ जइ एवं ता गिन्हसु नासं मह मूलियाए एयाए । जेण तुमं गयजीवा लेक्खीयसि जीवमाणा वि ॥४२॥ बीयाइ मूलियाए नासं दाऊण तुह करिस्सामि । देहं पुणन्नवं चिय मा भीयसु मज्झ पासत्था ॥४३॥ एवं ति पभणिऊणं गहिउं देवीए मूलियावलयं । सा वि अ समप्पिऊणं संपत्ता निययठाणंमि ॥४४॥ अह सा नरवइपासे सुत्ता गहिऊण ओसही नासं । ता दिट्ठा निच्चिट्ठा नरवइणा विगयजीव व्व ॥४५॥ एत्तो आकंदरओ उच्छलिओ ज्झत्ति राइणो भवणे । देवी मया मय त्ति य धाहावइ नरवई लोओ ॥४६।। नरवइआएसेणं मिलिया बहुमंतविज्जकुसला य । तह वि य सा परिचत्ता मइ त्ति दट्ठण निच्चिट्ठा ॥४७॥
१. पव्वाइएउ सा महादेवी । २. संपत्ता । ३. संपडइ । ४. दोलावए । ५. तो। ६. लक्खिज्जसि । ७. तह । ८. अकंदरओ । ९. झत्ति । १०. तेहिं वि ।
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