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________________ ३१ आधुनिक वृत्तान्त इस समय अणहिल्लपुर (पट्टन) में, ओसवाल जाति के देशलहरा वंश में समरासाह नामक बडा समर्थ श्रावक विद्यमान था । उसका परिचय सीधा दिल्ली के बादशाह से था । जब उसे यह मालूम हुआ कि, मुसलमानों ने शत्रुजय पर भी उत्पात मचाना शुरू किया है तब वह अलाउद्दीन के पास गया और उसे समझा-बुझा कर शत्रंजय को विशेष हानि से बचा लिया । बादशाह की रजा लेकर, उस साह ने गिरिराज पर, जितना नुकसान मुसलमानों ने किया था, उसे फिर तैयार कर देने का काम शुरू किया । बादशाह के आधीन में मम्माण* की संगमरमर की खानें थी, जिनमें बहुत ऊँची जाति का पत्थर निकलता था । समरासाह ने वहां से पत्थर लेने की इजाजत मांगी । बादशाह ने खुशी पूर्वक लेने दिया । कोई दो वर्ष में मूर्ति बनकर तैयार हुई । मंदिर की भी सब मरम्मत करवाई । संवत् १३७१ में, समरासाह ने पट्टन से संघ निकाला और गिरिवर पर जाकर भगवन्मूर्ति की फिर से मंदिर में नई प्रतिष्ठा की। प्रतिष्ठा में तपागच्छ की बृहत्पोशालिक शाखा के आचार्य श्रीरत्नाकरसूरि आदि कई प्रभावक आचार्य विद्यमान थे । इस प्रतिष्ठा के समय के कुछ लेख शत्रुजय पर अब भी विद्यमान हैं । स्वयं समरासाह और उसकी स्त्री समरश्री का मूर्तियुग्म भी मौजूद है। ___* यह 'मम्माण' कहां पर है, इसका कुछ पता नहीं लगा । पिछले जमाने में जितनी अच्छी जिनमूर्तियें बनाई जाती थी, वे प्रायः मम्माण के मारबल की होती थी । जैन ग्रन्थों में, आरास (आबू के पास) और मम्माण की खानों में के संगमरमर का बहुत उल्लेख मिलता है । १. महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल ने भी, तत्कालीन बादशाह मोजुद्दीन की रजा लेकर मम्माण से पत्थर मंगवाया था और उसकी मूर्तियाँ बनवाकर इस पर्वत पर तथा अन्यान्य स्थलों पर स्थापित की थी । २. वैक्रमे वत्सरे चन्द्रहयानीन्दुमिते सति ॥ श्रीमूलनायकोद्धारं साधुः श्रीसमरो व्यघात् ॥ - विविधतीर्थकल्प ३. देखो, मेरा प्राचीन जैनलेखसंग्रह । ___Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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