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आधुनिक वृत्तान्त भारत के प्रत्येक कौने में से श्रद्धालु जैन उस प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं, जिसका हमें ठीक ठीक ज्ञान भी नहीं है ।
मुख्य मंदिर का इतिहास इस तीर्थ पर, जैसा कि शत्रुजय माहात्म्यानुसार उपर लिखा गया है, सबसे पहले भरत चक्रवर्तीने अपने पिता श्री आदिनाथ तीर्थंकर का मंदिर बनवाया था । पीछे से उसीका उद्धार अनेक देव-मनुष्योंने किया । ऐसे १२ उद्धारों का, जो चौथे आरे में किये गये हैं, ऊपर उल्लेख हो चूका है । शत्रुजयमाहात्म्यकारने, भगवान महावीर के निर्वाण बाद के भी दो उद्धारों का उल्लेख किया है, जो ऊपर उल्लिखित हो चूका है । धर्मघोषसूरिने अपने प्राकृत 'कल्प' में, सम्प्रति, विक्रम
और शातवाहन राजा को भी इस गिरिवर का उध्धारक बताया है, 'लेकिन इनकी सत्यता के लिये अभी तक और कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिले ।
बाहड मंत्री का उद्धार । वर्तमान में जो मुख्य मंदिर है और जिसका चित्र इस पुस्तक के प्रारंभ में लगा हुआ है वह, विश्वस्त प्रमाणों से जाना जाता है कि, गुर्जर महामात्य बाहड (संस्कृत में वाग्भट) मंत्री के द्वारा उद्धृत है । विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में, जब चौलुक्य चक्रवर्ती महाराज कुमारपाल राज्य कर रहे थे, तब उनके उक्त प्रधानने, अपने पिता उदयन मंत्री की इच्छानुसार, इस मंदिर को बनवाया है । प्रबंध चिंतामणि'
* संपइ-विक्कम-बाहड-हाल-पालित्त-दत्तरायाइ ।
जं उद्धरिहंति तयं सिरि सत्तुंजय महातित्थं ॥ १. यह ग्रंथ विक्रम संवत् १३६१ के फाल्गुन सुदि १५, रविवार के दिन समाप्त हुआ है । गुजरात के इतिहास में इससे बडी पूर्ति हुई है । इसका अंग्रेजी अनुवाद, बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसायटीने प्रकाशित किया है ।
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