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आधुनिक वृत्तान्त
२१ ६ प्रेमचंद मोदी की टोंक । अहमदाबाद के धनिक मोदी प्रेमचंद सेठ ने शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करने के लिये एक बड़ा भारी संघ निकाला था । तीर्थ की यात्रा किये बाद उनका दिल भी यहां पर मंदिर बनाने का हो गया । लाखों रुपये खर्च कर यह टोंक बनाई और इसकी प्रतिष्ठा करवाई । इसमें छ बड़े मंदिर और ५१ देहरियां बनी हुई हैं । इस सेठने अपनी अगणित दौलत धर्मकार्य में खर्च की थी । कर्नल टॉड साहब ने अपने पश्चिम भारत के प्रवास वर्णन में लिखा है कि, "मोदी प्रेमचन्द की दौलत का कुछ ठिकाना नहीं था । उसकी कीर्ति ने सम्प्रति जैसे प्रतापी और उदार राजा की कीर्ति को भी ढांक दी है ।"
७ बालाभाई की टोंक । घोघा-बंदर के रहनेवाले सेठ दीपचंद कल्याणजी, जिनका बचपन का नाम बालाभाई था, उन्होंने लाखों रुपये व्यय कर संवत् १८९३ में इस टोंक को बनाया है । इसमें छोटे-बडे अनेक मंदिर अपने उन्नत शिखरों से आकाश के साथ बात कर रहे हैं ।
इस टोंक के ऊपर के सिरे पर एक मंदिर है, जो "अद्भुत" मंदिर कहा जाता है । इसमें, आदिनाथ भगवान की, पांच सौ धनुष जितने विशाल शरीरमान का अनुकरण करनेवाली मूर्ति है । यह पर्वत ही में से उकीरी गई है । यह प्रतिमा १८ फूट ऊँची है । एक घूटने से दूसरे घूटने तक १४॥ फूट चौडी है । संवत् १६८६ में धरमदास सेठने इसकी अंजनशलाका करवाई है । इसकी वर्ष भर में एक ही बार, बैशाख सुदि ६ के दिन, पूजा की जाती है, जो शत्रुजय के अंतिम उद्धार का (जिसका ही मुख्य वर्णन इस पुस्तक में किया गया है) वार्षिक दिन गिना जाता है । बहुत से अज्ञान लोग इसे भीम की मूर्ति समझकर पूजा करते हैं । यहां पर खडे रहकर पर्वत के शिखर
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