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________________ अ० १. शस्त्रपरिज्ञा, उ० १. सूत्र १-४ तस्वा इमानि कारणानि निर्दिष्टानि सन्ति१. मोहनीयस्य उपशमः । २ अध्यवसानशुद्धि (लेश्याविशुद्धिः ) । ३. ईहापोहमार्गणगवेषणाकरणम् । १. उवसंतमोहणिज्जं नमिपव्वज्जायां' मोहनीयस्योपशम उट्टङ्कितोऽस्ति 'उवसंत मोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई ।' २. साडी मृगापुत्रेण साधुं दृष्ट्वा जातिस्मृतिर्लब्धा तत्र मोहनीयस्योपशमस्य अध्यवसानशुद्वेश्व युगपदुल्लेखोऽस्ति' । अह तत्थ अइच्छंतं, पासई समणसंजयं । तवनियम संजमधरं, सीलड्ढं गुणआगरं ॥ तं हुई मियापु दिए अणिमिसाए उ । हमनेर एवं विपुवं मए पुरा ॥ साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि सोहणे । मोहंगयस्स संतस जाईसरणं समुप्यन्तं ॥ एवं हरिकेशबलेनापि विमर्शं कुर्वता जातिस्मृतिः लब्धा 'चित्रसंभूति' अध्ययनस्य पृष्ठभूमावपि जातिस्मृतेः उल्लेखोऽस्ति । * भृगुपुरोहितस्य द्वावपि पुत्रौ मुनि दृष्ट्वा जातिस्मृति लब्धवन्तो दृष्टवन्तौ च पूर्वचरितौ तपः संयमी ।" जातिस्मृत्या धर्म प्रति सहजं बद्धासंवेगयोः संवर्धन भवति इत्यनुभवपूर्वकं भगवता महावीरेण अनेकान् जनान् पूर्वजातिः स्मारिता । मेघकुमारो मुनिप्रव्रज्यां विहातुं प्रवृत्तः तदानीं भगवता तस्य पूर्ववतितृतीयजन्मन: स्मृतिः कारिता । मेघकुमारस्यापि शुभैः परिणामैः प्रशस्तं रध्यवसानं विशुद्धयमाना भिश्याभिः तदावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमेन ईहापोहमार्गणगवेषणां १. उत्तरज्झयणाणि, ९.१ । २. वही, १९।५-७ । ३. सुखबोधा, पत्र १७४ : एवं भावेमाणो तक्खणसंजायजाइ संभरणो सुमरियविमाणवासो"। ४. उत्तरज्मयणाणि, अध्ययन १३ । Jain Education International जाती है । उसके ये कारण निर्दिष्ट हैं१. मोहनीय कर्म का उपशम २. अध्यवसानमुद्धि (लेखा-विडि ३. ईहापोहमार्गणागवेषणाकरण । १. उपशान्तमोहनीय 'नमपश्यना' में मोहनीय के उपशम का उल्लेख किया गया है 'उसका मोह उपशान्त था जिससे उसे पूर्वजन्म की स्मृति २१ हुई ।' २. अध्यवसानशुद्धि मुगापुत्र ने साधु को देखकर जातिस्मृति प्राप्त की। वहां मोहनीय के उपशम और अध्यवसान-शुद्धि का एक साथ उल्लेख है । 'उसने वहां जाते हुए एक संयत श्रमण को देखा, जो तप, नियम और संयम को धारण करने वाला, शील से समृद्ध और गुणों का आकर था।' मृगापुत्र ने उसे अनिमेषदृष्टि से देखा और मन ही मन सोचा- मैं मानता हूं कि ऐसा रूप मैंने पहले कहीं देखा है । साधु के दर्शन और अध्यवसाय पवित्र होने पर 'मैंने ऐसा कहीं देखा है' इस विषय में यह सम्मोहित हो गया पित्तवृत्ति सघनरूप में एकाग्र हो गई और विकल्प शान्त हो गए। इस अवस्था में उसे पूर्वजन्म की स्मृति हो आई ।' इस प्रकार हरिकेशस ने भी विमर्श करते हुए जातिस्मृति प्राप्त की । 'विभूति' अध्ययन की पृष्ठभूमि में भी जातिस्मृति का उल्लेख है। भृगुपुरोहित के दोनों पुत्र मुनि को देखकर जातिस्मृति को उपलब्ध हुए और उन्होंने पूर्व आचरित तप, संयम को देखा | जातिस्मृति से धर्म के प्रति बढ़ा और संवेग में सहज वृद्धि होती है। इस अनुभव के आधार पर भगवान महावीर ने अनेक व्यक्तियों को पूर्वजन्म का स्मरण कराया। मेघकुमार मुनि - प्रव्रज्या को छोड़ने के लिए तैयार हो गया तब भगवान् ने उसे तीसरे पूर्वजन्म की स्मृति कराई। मेघकुमार को भी ईहा अपोह मार्गणा गवेषणा करते हुए शुभ परिणामों, प्रशस्त अध्यवसायों, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं तथा तदावरणीय (जातिस्मृति के आवारक) कर्मों का क्षयोपशम होने ५. वही, १४।५ : सरितु पोराणिय तस्थ जाई, तहा सुचिणं तवसंजनं च । ६. अंगा नावामा ११५६ एवं लु मेहा! तुम इस तच्चे आईए भवमा... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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