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________________ पढमं अज्झयणं : सत्थपरिणा पहला अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा पढमो उद्देसो : पहला उद्देशक १. सुयं मे आउस ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इहमेगेसि नो सण्णा भवइ, तं जहा-पुरस्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओं अहमंसि, पच्चस्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड़ाओ वा दिसाओ आगो अहमंसि, अहे वा दिसामो आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि । सं०-श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम्-इह एकेषां नो संज्ञा भवति, तद् यथा--पौरस्त्याया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, दक्षिणस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, पाश्चात्याया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, उत्तरस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि ऊ या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, अधो वा दिशाया गतोऽहमस्मि, अन्यतरस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि. अनुदिशाया वा आगतोऽहमस्मि । आयुष्मन् ! मैंने सुना है। भगवान ने यह कहा-इस जगत् में कुछ मनुष्यों को यह संज्ञा नहीं होती, जैसे-मैं पूर्व दिशा से आया हूं, अथवा मैं दक्षिण दिशा से आया हूं, अथवा मैं पश्चिम दिशा से आया हूं, अथवा मैं उत्तर दिशा से आया हूं, मथवा मैं अव दिशा से आया हं, अथवा मैं अधो दिशा से आया हूं, अथवा मैं किसी अन्य दिशा से आया हूं, अथवा मैं अनुदिशा से आया है। २. एवमेगेसि णो णातं भवति-अस्थि मे आया ओववाइए, णस्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी? केवाइओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि? सं०–एवं एकेषां नो ज्ञातं भवति-अस्ति मे आत्मा औपपातिकः, नास्ति मे आत्मा औपपातिकः, कोऽहं बासम् ? को वा इतश्च्युतः इह प्रेत्य भविष्यामि ? इसी प्रकार कुछ मनुष्यों को यह ज्ञात नहीं होता-मेरी आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली है, अथवा मेरी आत्मा पुनर्जन्म नहीं लेने वाली है, मैं (पिछले जन्म में) कौन था? मैं यहां से च्युत होकर अगले जन्म में क्या होऊंगा? ३. सेज्ज पुण जाणेज्जा-सहसम्मुइयाए, परवागरणणं, अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा, तं जहा-पुरस्थिमाओ वा दिसामो आगओ अहमंसि, दक्षिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तरामो वा दिसाओ आगओ अहमसि, उड्डाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि। सं०–स यत् पुनः जानीयात् --स्वस्मृत्या, परव्याकरणेन, अन्येषां वा अन्तिके श्रुत्वा, तद् यथा-पौरस्त्याया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, दक्षिणस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, पाश्चात्याया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, उत्तरस्या वा दिशाया भागतोऽहमस्मि, ऊर्ध्वाया वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, अधो वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, अन्यतरस्या वा दिशाया आगतोऽहमस्मि, अनुदिशाया वा आगतोऽहमस्मि । कोई मनुष्य १. स्व-स्मृति से, २. पर---आप्त के निरूपण से अथवा ३. अन्य (आप्त के अतिरिक्त) विशिष्ट ज्ञानी के पास सुनकर यह जान लेता है, जैसे-मैं पूर्व दिशा से आया हूं, अथवा मैं दक्षिण दिशा से आया हूं, अथवा मैं पश्चिम दिशा से आया हूं, अथवा मैं उत्तर दिशा से आया हूं, अथवा मैं ऊर्ध्व दिशा से आया हूं, अथवा मैं अधो दिशा से आया हूं, अथवा मैं किसी अन्य दिशा से आया हूं, अथवा मैं अनुदिशा से आया हूं। ४. एवमेगेसि जं जातं भवइ-अस्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ दिसाओ अणुदिसाओ वा अणसंचरइ, सवाओ विसाओ सव्वाओ मणुदिसाओ जो आगओ अणसंचरइ सोहं । निरूपण से अथवा दिशा से आया हशा से आया हूँ। Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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