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________________ आचारांगभाष्यम् उपनिषत्सु जीवास्तित्वविषये चचितमस्ति, किन्तु प्रस्तुताध्ययने निरूपित: षड्जोवनिकायसिद्धांत: सर्वथा मौलिकः । त्रसकायजीवानामन्यत्रापि प्रतिपादनं लभ्यते, क्वचित् क्वचित् वनस्पतिकायजीवानामपि, किन्तु शेष- जीवनिकायानां प्रतिपादन सर्वथा मौलिकमस्ति । सूत्रकृतांगादिषु' तत उत्तरवर्तिषु आगमेष्वपि एषेव षड़जीवनिकायव्यवस्था समादतास्ति । ___ स्थावरजीवकायानां वेदनानिरूपणमपि सर्वथा मौलिकमस्ति । मनुष्य शरीरेण सह बनस्पतिशरीरस्य तुलनापि ध्यानमाकर्षति विदुषाम् । शस्त्रसिद्धांतोऽपि गवेपणाया महत्तां सूचयति । नियुक्तिकृता यथा शस्त्रस्य विस्तरः कृत: जोवत्वसिद्धय च हेतुवादस्य पद्धति- रालंबिता, तत्रापि सहज ध्यानमाकृष्टं भवति। एवमेतदध्ययनं अनेकाभिर्दृष्टिभिरत्यन्तं महत्त्वपूर्णमस्ति। उपनिषदों में जीव के अस्तित्व के विषय में चर्चा हुई है, किन्तु प्रस्तुत अध्ययन में निरूपित षड्जीवनिकाय का सिद्धांत सर्वथा मौलिक है। त्रसजीवों का प्रतिपादन अन्यत्र भी प्राप्त होता है और कहीं-कहीं वनस्पतिकाय जीवों की चर्चा भी मिलती है, किन्तु शेष जीवनिकायों का प्रतिपादन सर्वथा मौलिक है। सूत्रकृतांग आदि तथा उसके उत्तरवर्ती आगमों में भी षड्जीवनिकाय की यही व्यवस्था स्वीकृत हुई है। स्थावर जीव-निकायों का वेदना-निरूपण भी सर्वथा मौलिक है । मनुष्य-शरीर के साथ वनस्पति-शरीर की तुलना भी विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करती है। इन जीवनिकायों के शस्त्र का सिद्धांत भी गवेषणा की महत्ता सूचित करता है। नियुक्तिकार ने जिस प्रकार शस्त्र का विस्तार से प्रतिपादन किया है और जीवत्व-सिद्धि के लिए हेतुवाद की पद्धति का आलम्बन लिया है, उस ओर भी ध्यान सहज आकृष्ट होता है। इस प्रकार यह अध्ययन अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। १. अंगसुत्ताणि १, सूयगडो १।९।८,९ । २. दसवे आलियं, अध्ययन ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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