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________________ परिशिष्ट-६ देशीशब्द (अर्थ के लिए देखें परिशिष्ट-३) अदु'-९।११५,१४; ९।२।८; ९।३।१०।९।४।४,१०,११,१३ आणक्खेस्सामि-८७७ एयावंति सम्वावंति'-१७ गेहि-६।३७ चाई-३७ चिट्ठ-४११८ झंझा-३१६९ णिह-४१५ गूम (नूम)--८।८।२४ दुम्मि-६५५ पंत-९३२ पगंच-६।४२ पलियं-४१२७ पलीबाहरें-५२६९ पहेण-२११०४ पाएज्ज-८१ पासणिअ-५८७ भंजग-६७ रिवकासि-९।१४ वत्थर्ग-९।११४ विप्पिया-६१०९ वियर्ड-९।१।१८ विस्सं-८१०७ विह-८५८ संखडि-९१२१९ संघड-४।५२ सुमि --६।५५ हुरत्था-५॥१२; चा२१ १. आचारांग चूणि, पृष्ठ ३०० : अदुत्ति सुत्तभणितीते अह इति वुत्तं भवति । २. आचारांग वृत्ति, पत्र २५६ : एतत् क्रियापदं देशीपद___ संबद्धमेव संभाव्यते। ३. आचारांग वृत्ति, पत्र २५ : एतौ द्वौ शब्दो मागधदेशी भाषाप्रसिद्धचा एतावन्तः सर्वेऽपीत्येतत्पर्यायौ। ४. देशीशब्दोऽयम् । ५. आचारांग चूणि, पृष्ठ १८४ : प्रतीपं आहरे जंतुं दृष्ट्वा संकोचए देसीभासाए । ६. आचारांग चूर्णि, पृष्ठ २४९ : पाएज्ज तहा पादिज्ज ___ भोइज्जा, तीयग्गहणं देसीभासाओ असित पीतं भण्णति । ७. आचारांग चूणि, पृष्ठ ३०० : वत्थभावो वत्थता, देसी___ भासाए वा सुत्तभणितीए । ८. आचारांग चूणि, पृष्ठ २८३ : देसीभासाओ विहं पिहं । ९. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ १६१ : हुरत्या णाम देसी भासातो बहिद्धा। (ख) वही, पृष्ठ २६१ : हुरत्थं बहिता गामादीणं देसीभासा उज्जाणादिसु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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