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अ.८. विमोक्ष, उ०७-८. सूत्र १२६-१३०, गाथा १
३६५ १२९. से तत्थ विअंतिकारए।
सं०-स तत्र व्यन्तिकारकः ।
उस मृत्यु से वह अन्तःक्रिया करने वाला भी हो सकता है। १३०. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खम, णिस्सेयसं, आणगामियं ।-ति बेमि ।
सं०-इत्येतत् विमोहायतनं हितं, सुखं, क्षम, निःश्रेयसं, आनुगामिकम् । इति ब्रवीमि ।। यह मरण प्राण-विमोह की साधना का आयतन, हितकर, सुनकर, कालोचित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है। ऐसा मैं कहता हूं।
भाष्यम् १२८-१३०-स्पष्टम् ।
स्पष्ट है।
अट्ठमो उद्देसो : आठवां उद्देशक
१. आणुपुव्वी-विमोहाई, जाई धीरा समासज्ज । वसुमंतो मइमंतो, सव्वं जच्चा अणेलिसं ॥
सं०-आनुपूर्ध्या विमोहानि, यानि धीराः समासाद्य । वसुमन्त: मतिमन्तः, सर्व ज्ञात्वा अनीदृशम् । धीर, संयमी और ज्ञानी भिक्षु साधना के क्रम में प्राप्त होने वाले अनशन (आनुपूर्वी-विमोक्ष या अव्याघात मरण) का उपयुक्त समय समझते हैं, तब वे बाल-मरण से भिन्न तीनों-भक्त-प्रत्याख्यान, इंगिनीमरण और प्रायोपगमन अनशनों के विधान का ज्ञान करते हैं।
भाष्यम् १---आनुपूर्वी ---अनुक्रमः । ते भिक्षवः प्रव्रज्यां आनुपूर्वी का अर्थ है-अनुक्रम । वे भिक्षु प्रव्रज्या को ग्रहण गृह्णन्ति, शिक्षामाददते, सूत्रार्थयोर्ग्रहणं कुर्वन्ति, अध्यापनं करते हैं, शिक्षा को प्राप्त करते हैं, सूत्र और अर्थ का ग्रहण करते हैं जनपदविहारं च विदधते । ततश्च जातायां वयसः तथा अध्यापन और जनपद-विहार में संलग्न रहते हैं। तत्पश्चात् शक्तेश्च हानौ विमोहानि'- मोहशून्यानि समाधि- अवस्था और शक्ति की क्षीणता होने पर वे मुनि मोहशून्य समाधि-मरण मरणानि स्वीकुर्वन्ति । एतद् अनीदृशं-बालमरणापेक्षया (तीन मरणों में से कोई एक) को स्वीकार करते हैं। वे अनीदृशअनन्यसदृशं सर्व समाधिमरणविधि ज्ञात्वा कुर्वन्ति। बाल-मरण की अपेक्षा से सर्वथा भिन्न संपूर्ण समाधिमरण की विधि को समाधिमरणं त एव स्वीकुर्वन्ति ये सन्ति धीराः वसुमन्तः जानकर उसे स्वीकार करते हैं। समाधिमरण को वे ही मुनि स्वीकार मतिमन्तश्च । अनेन धृतिः संयमः ज्ञानं च एतानि त्रीणि करते हैं जो धीर हैं, संयमी हैं और ज्ञानी हैं । इससे धृति, संयम समाधिमरणस्य अर्हतायाः अनुमापनानि सूचितानि और ज्ञान-ये तीनों समाधिमरण की अर्हता के मानक सूचित होते भवन्ति । १. आचारांग चूणि पृष्ठ २८७ : विमोक्खंतेति विमोहा, जं है। चौथे उद्देशक में विहायोमरण का विधान है। वह मणियं - मरणाणि।
आपवाविक है। २. वही, पृष्ठ २८७ : संजमो उसी जत्थ अत्थि जत्थ वा ___ अनशन दो प्रकार का होता है सपराक्रम और विज्जति सो उसिम, भणियं च–'संजमे वसता तु वसुर्वसी
अपराक्रम । जंधा-बल होने पर किया जाने वाला अनशन वा, येनेन्द्रियाणी तस्य वशे, वसु च धनं ज्ञानाचं, सपराक्रम और जंधा-बल के क्षीण होने पर किया जाने तस्यास्तित्वान्मुनिर्वसुमां बुसिमं च युसिमंतो।'
वाला अनशन अपराक्रम होता है। ३. समाधि-मरण के लिए किया जाने वाला अनशन तीन
प्रकारान्तर से अनशन दो प्रकार का होता है- व्याघातप्रकार का होता है-१. भक्त-प्रत्याख्यान, २. इंगिनी
युक्त और अव्याघात । पूर्व उद्देशकों में व्याघात-युक्त (इंगित) मरण (इत्वरिक अनशन), ३. प्रायोपगमन ।
अनशन का विधान है। प्रस्तुत उद्देशक में अव्याघात पांचवें उद्देशक में भक्त-प्रत्याख्यान, छ8 में इंगिनी
अनशन की विधि प्रतिपादित की गई है। अव्याघात अनशन मरण और सातवें में प्रायोपगमन का विधान किया गया
आकस्मिक नहीं होता। वह क्रम-प्राप्त होता है । इसलिए
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