________________
आमुखम्
प्रस्तुताध्ययनस्य नामास्ति 'लोकसारः' । इदं नाम प्रस्तुत अध्ययन का नाम है 'लोकसार'। यह नाम गौण है। गौणमस्ति । आदानपदेनास्य नाम भवति 'आवंती'।' आदानपद के अनुसार इसका नाम होता है 'आवंती'। इसके छह अस्य षड् उद्देशकाः वर्तन्ते। तेषां विषयनिर्देश उद्देशक हैं। उनका विषय-निर्देश इस प्रकार हैएवमस्ति१. हिंसकः विषयारम्भकः एकचरश्च मुनिः न १. हिंसक, विषयों के लिए आरंभ करने वाला तथा एकचर भवति।
(अकेला विचरण करने वाला) मुनि नहीं होता। २. स एव मुनिर्भवति योऽस्ति विरतः। योऽस्ति २. मुनि वही होता है जो विरत है। जो अविरतवादी है वह अविरतवादी स परिग्रहवान् भवतीति ।
परिग्रही होता है। ३. यो विरतो भवति स एव अपरिग्रहः निविण्ण- ३. जो विरत होता है वही अपरिग्रही और कामभोगों से कामभोगश्च भवति ।
उदासीन होता है। ४. अव्यक्तस्य-सूत्रार्थापरिनिष्ठितस्य जायमानानां ४. अव्यक्त-सूत्र और अर्थ से अनभिज्ञ मुनि के साधनाकाल 'प्रत्यपायानां निदर्शनम् ।
में उत्पन्न होने वाले दोषों का निदर्शन। ५. साधुना ह्रदोपमेन भाव्यम् । यथा जलपरिपूर्णः ५. साधु को ह्रद के समान होना चाहिए। जैसे जल से ह्रदः प्रशस्यो भवति तथा ज्ञानदर्शनचारित्र
परिपूर्ण ह्रद प्रशस्य होता है वैसे ही ज्ञान-दर्शन और परिपूर्णो मुनिरपि प्रशस्यो भवति । तस्यैव तप:
चारित्र से परिपूर्ण मुनि भी प्रशस्य होता है। उसी के तप, संयमगुप्तयो निःसंगता च ।
संयम, गुप्ति तथा निःसंगता होती है। ६. उन्मार्गः वर्जनीयः तथा रागद्वेषौ च त्याज्यो। ६. उन्मार्ग का वर्जन तथा राग-द्वेष का त्याग करना चाहिए।
उद्देशकानां अर्थाधिकारेभ्य एव सारपदस्य फलितं इन छह उद्देशकों के विषय-निर्देश से ही सारपद का फलित लभ्यते। प्रश्नोऽस्ति अस्मिन्नसारे लोके किमस्ति प्राप्त होता है। प्रश्न होता है कि इस असार संसार में 'सार' क्या सारम् ? अस्य अनेकानि उत्तराणि । लौकिकानामुत्तर- है ? इस प्रश्न के अनेक उत्तर हैं। लौकिक व्यक्तियों का उत्तर हैमस्ति'अस्मिन्नसारे संसारे सारं सारंगलोचना।'
• इस असार संसार में सार है स्त्री। 'अस्मिन्नसारे संसारे सारं वित्तस्य संग्रहः ।'
• इस असार संसार में सार है-धन का संग्रह । 'अस्मिन्नसारे संसारे सारं मिष्टान्नभोजनम् ।'
• इस असार संसार में सार है-मिष्टान्न भोजन । यस्मै यद् रोचते तदेव तस्य सारम् । यथा श्रूयते
जिसको जो रुचिकर लगता है, वही उसके लिए सार है।
जैसे सुना जाता है'दधि मधुर मधु मधुरं द्राक्षा मधुरा च शर्करा मधुरा।
वही मीठा होता है। मधु मीठा होता है। वाख और शर्करा तस्य तदेव हि मधुरं यस्य मनो यत्र संलग्नम् ॥' भी मीठी होती है। उस व्यक्ति के लिए वही मधुर या मोठी है,
जिसका मन जिसमें लग जाता है। १. आचारांग नियुक्ति, गाथा २३८ :
२. आचारांग नियुक्ति, गाथा २३५-२३७ : 'आयाणपएणावंति गोग्णनामेण लोगसारुत्ति।'....
हिंसगविसयारंभग एगचत्ति न मुणी पढमगंमि । वृत्ति, पत्र १७८ : आदीयते-प्रथममेव गृह्यत इत्यादानं विरओ मुणित्ति बिइए अविरयवाई परिग्गहिओ ॥ ताच तत्पदं च आदानपर्व तेन करणभूतेनावन्तीत्येतन्नाम, तईए एसो अपरिग्गहो य निम्विन्नकामभोगो य । अध्ययनादाबावन्तीशब्दस्योच्चारणाद्, गुणनिष्पन्नं गौणं
अश्वत्तस्सेगचरस्स पच्चवाया चउत्थंमि ॥ तच्च तन्नाम च गौणनाम तेन हेतुना लोकसार इति ।
हरउवमो तवसंयमगुत्ती निस्संगया य पंचमर । उम्मग्गवज्जणा छट्ठगंमि तह रागदोसे य॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org