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________________ अ० ३. शीतोष्णीय, उ०४. सूत्र ८३.८६ एष परिणाम :- गर्भेण जन्मनः जन्मना मृत्योः, मृत्युना नरकस्य तिर्यग्गतेश्च यथावकाशं संबंधयोजना | तत्र अंतिम परिणामोस्ति दुःखम् । यदि दुःखं ज्ञातव्यं तहिं क्रोधोपि ज्ञातव्यः पावन् मोहोपि ज्ञातव्यो भवति । एते न ज्ञाता भवन्ति तावद् दुःखं वस्तुवृत्या ज्ञातं न भवति । यदि दुःखं परिहर्तव्यमस्ति तहि सर्वप्रथमं क्रोधः परिहर्तव्य: यावन्मोहश्च । एतेषां परिहारं विना दुःखस्य परिहारः कर्तुं न शक्यते। अत एवोच्यते भाष्यम् ८४ - स मेधावी पुरुषः दुःखं परिजिहीर्षु : अनेन क्रमेण प्रहारं कुर्यात् — सर्वप्रथमं क्रोधमभिनिवर्त येत्यावर्तयेद् चिन्यात्' वा येन कोधछिन्नः तेन मानश्छिन्नः यावद् दुःखं छिन्नम् । ८५. एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स । सं०- एतद् पश्यकस्य दर्शनं उपरतशस्त्रस्य पर्यन्तकरस्य । यह अहिंसक और निरावरण द्रष्टा का दर्शन है । ८४. से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च गमंच, जम्मं च, मारं च नरगं च तिरियं च दुक्तं च । सं० स मेधावी अभिनिवर्तयेत् क्रोधं च मानं च, मायां च लोभं च प्रेयश्च दोषं च, मोहं च, गर्भं च जन्म च, मारं च, नरकं च, तिर्यञ्च च दुःखं च । मेधावी क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, मोह, गर्भ, जन्म, मृत्यु, नरकगति, तियंचगति और दुःख को छिन्न करे । भाष्यम् ८५-- ३।७२ सूत्रवत् । ६. आयाणं णिसिद्धा समन्नि । सं० - आदानं निषेध्य स्वकृतभित् । जो पुरुष भाष्यम् ८६–३।७३ सूत्रवत् । tee जन्म, जन्म से मृत्यु, मृत्यु से अपने कर्मों के अनुसार) नरक, तिर्यञ्च आदि गतियों में जाता है । उसका अंतिम परिणाम है- । दु:ख १. आचारांग गि, पृष्ठ १२८ निव्वनंति वा सम्पति या एग लोगेवि जहा एगेगप्पहारेण हत्यो निम्तो Jain Education International यदि दुःख को जानना है तो क्रोध को भी जानना होगा । इसी प्रकार मान, माया, लोभ, राम और अन्त में मोह को भी जानना होगा। जब तक ये सारे ज्ञात नहीं हो जाते तब तक दुःख भी यथार्थ रूप में ज्ञात नहीं होता । यदि दुःख का परिहार करना है तो सबसे पहले क्रोध का परिहार करना होगा। इसी प्रकार मान, माया, लोभ, राग-द्वेष और मोह का परिहार करना होगा। इन सबके परिहार के बिना दुःख का परिहार नहीं किया जा सकता। इसीलिए कहा है 3 दुःख का परिहार करने का इच्छुक वह मेधावी पुरुष इस क्रम से प्रहार करे - सबसे पहले क्रोध का व्यावर्तन करे अथवा छेदन करे । जिसने शोध को छेद डाला उसने मान को, जिसने मान को उसने माया को, जिसने माया को उसने लोभ को, जिसने लोभ को उसने राग को, जिसने राग को उसने द्वेष को जिसने द्वेष को उसने मोह को, जिसने मोह को उसने गर्भ को जिसने गर्भ को उसने जन्म को, जिसने जन्म को उसने मृत्यु को, जिसने मृत्यु को उसने नरकगति को, जिसने गति को उसने तिर्यगति की जिसने तिर्यञ्चगति को उसने दुःख को छेद डाला है । कर्म के आदान- कषाय को रोकता है, वही अपने किए हुए कर्म का भेदन कर पाता है। देखें - ३।७३ वां सूत्र । देखें - ३।७२ वां सूत्र । पायो वा भणितं दिया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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