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________________ आमुखम् प्रस्तुताध्ययनस्य नामास्ति शीतोष्णीयम् । अस्मिन् प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'शीतोष्णीय' है। साधनाकाल में साधनाकाले आगम्यमानानां शीतोष्ण स्थितीनां सहनं आनेवाली शीत और उष्ण स्थितियों को सहने का विधान इसमें किया विहितमस्ति, अतः शीतोष्णीयमिति नाम विद्यते गया है। इसलिए इसका अन्वर्थ नाम 'शीतोष्णीय' रखा गया है। पद अन्वर्थम् । पदार्थदृष्ट्या शीतमिति शीतलं, उष्णमिति की दृष्टि से 'शीत' पद का अर्थ है-शीतल और 'उष्ण' पद का अर्थ ग्रीष्मं, तात्पर्यार्थे शीतपदेन अनुकूलस्य उष्णपदेन च है-ग्रीष्म । तात्पर्य की भाषा में शीत पद से अनुकूल और उष्णपद से प्रतिकूलस्य ग्रहणं कृतम् । नियुक्तिकारेण आभ्यां पदाभ्यां प्रतिकूल का ग्रहण किया गया है । नियुक्तिकार ने इन दो पदों के साथ द्वाविंशतिपरीषहाणां संबंधो योजितः। तदनुसारं स्त्री- बावीस परीषहों की संबन्ध-योजना की है। उसके अनुसार स्त्री परीषह सत्कारपरीषहौ शीतौ शेषाश्चोष्णाः ।' अनयोर्वेकल्पि- और सत्कार परीषह-ये दो शीत तथा शेष बीस परीषह उष्ण के कोऽर्थोपि निर्यक्ती उपलभ्यते-ये तीव्रपरिणामाः अन्तर्गत हैं। नियुक्ति में इनका वैकल्पिक अर्थ भी प्राप्त होता हैपरीषहास्ते उष्णाः, ये च मन्दपरिणामास्ते शीताः । जो तीव्र परिणाम वाले परीषह है वे उष्ण हैं तथा जो मंद परिणाम वाले हैं वे शीत हैं। निर्यक्ती शीतोष्णयोः निक्षेपावसरे कतिचिद् नियुक्ति में 'शीत' और 'उष्ण'-इन दो पदों के निक्षेप के विकल्पाः प्रदर्शिताः सन्ति, यथा-हिमतुषारकरकादयः प्रसंग में कुछेक विकल्प प्रस्तुत किए गए हैं । शीत पद का निक्षेपसचेतनं द्रव्यशीतम्, हारादयः अचित्तं द्रव्यशीतम्। . सचेतन द्रव्यशीत-हिम, तुषार, करक (ओले) आदि। सचित्तोदककृताः जलदाः मिथं द्रव्यशीतम् । पुद्गलस्य ० अचेतन द्रव्यशीत-हार आदि । शीतो गुण: पुद्गलाश्रितं भावशीतम्। जीवस्य • मिश्र द्रव्यशीत--सचित्त जल से निष्पन्न बादल । औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिका भावा: भावशीताः । • भावशीत-पुद्गल का शीत गुण पुद्गलाश्रित भावशीत है। एवं उष्णपदस्य निक्षेपावसरे सचेतनं द्रव्योष्णं अग्निः । जीब का औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिक अचेतनं द्रव्योष्णं आदित्यरश्मिः । मिश्रं द्रव्योष्णं कवोष्णं भाव जीवाश्रित भावशीत है। अनुवृत्तत्रिदण्डं उष्णं जलं वा। अचेतनः भावोष्ण : उष्ण पद का निक्षेपपुद्गलस्य उष्णो गुण ः। सचेतनः भावोष्ण: जीवस्य • सचेतन द्रव्यउष्ण-अग्नि । औदयिको भावः । क्रोधो मानश्चोष्णो भवति । विवक्षा • अचेतन द्रव्यउष्ण-सूर्य की रश्मि । भेदेन लोभः शीतोऽपि भवति । क्षायिको भावः अशेष • मिश्र द्रव्यउष्ण-थोड़ा गरम जल, तीन उकाले से रहित गरम कर्मदहनान्यथानुपपत्तेरुष्णो भवति ।' जल। • अचेतन भावउष्ण-पुद्गल का उष्ण गुण। • सचेतन भाव उष्ण-जीव का औदयिक भाव । क्रोध और मान उष्ण होते हैं। विवक्षाभेद से लोभ शीत भी होता है। क्षायिक भाव समस्त कर्मों का दहन किए बिना उत्पन्न नहीं होता, इसलिए वह उष्ण है। १. (क) आचारांग नियुक्ति, गाथा २०२: २.(क) आचारांग नियुक्ति, गाथा २०३ : इत्थी सक्कारपरीसहो य दो भावसीयला एए। जे तिव्वप्परिणामा परीसहा ते भवंति उल्हा उ। सेसा वीसं उण्हा परीसहा हुंति नायव्वा ॥ जे मंदप्परिणामा परीसहा ते भवे सीया॥ (ख) आचारांग वृत्ति, पत्र १३६ : स्त्रीपरीषहः सत्कार- (ख) आचारांग वृत्ति, पत्र १३६ : तीव्रो-दुःसहः परिपरीषहश्च द्वावप्येतो शोतो, भावमनोनुकूलत्वात्, णामः-परिणतिर्येषां ते तथा, य एवंभूताः परीषहास्ते शेषास्तु पुनर्विशतिरुष्णा ज्ञातव्या भवन्ति, मनसः उष्णाः, ये तु मन्दपरिणामास्ते शीता इति। प्रतिकूलत्वादिति । ३. आचारांग नियुक्ति, गाथा २०० : बवे सीयलवव्वं वव्वुण्हं चेव उल्हबव्वं तु। भावे उ पुग्गलगुणो जीवस्स गुणो अपविहो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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