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________________ महावीर ने जिस धर्म का प्रतिपादन किया, वह विशुद्ध रूप में आध्यात्मिक धर्म है। उसका आरम्भबिन्दु है आत्मा का संज्ञान और चरम-बिन्दु है आत्मोपलब्धि या आत्म-साक्षात्कार। पर्यावरण की दृष्टि से प्रस्तुत आगम का अध्ययन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। समता और आत्म-तुला--ये दोनों पर्यावरण के प्रदूषण से बचाव करने के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस--जीवों के ये छह निकाय हैं। महावीर ने कहा--इनके अस्तित्व को अस्वीकार करने का अर्थ होगा अपने अस्तित्व का अस्वीकार। इनके अस्तित्व को मिटाकर कोई भी व्यक्ति अपने अस्तित्व को बचा नहीं सकता। इनके अस्तित्व के प्रति प्रमत्त रहकर कोई भी व्यक्ति अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक नहीं रह सकता। हिंसा का मुख्य साधन है-परिग्रह । आधुनिक अर्थशास्त्रीय अवधरणा ने हिंसा को प्रोत्साहन दिया है। अर्थशास्त्रीय अभिमत है- अर्थ के प्रति राग उत्पन्न करो। महावीर कहते हैं--पदार्थ के प्रति विराग उत्पन्न करो। महावीर ने असंग्रह का जो सिद्धान्त दिया वह जनसंख्या के आधार पर नहीं दिया। उन्होंने मानवीय मनोवृत्ति और संग्रह के परिणामों को ध्यान में रखकर असंग्रह अथवा इच्छा-संयम का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। महावीर ने कहा-यही महान् भय है कि मनुष्य पदार्थ की परिक्रमा कर रहा है। उसके साथ ममत्व 'यह मेरा है।'-इस मनोवृत्ति को गाढ कर रहा है। यही दु:ख का मूल है।' _ 'हिंसा परिणाम है। उसका मूल हेतु है-परिग्रह। परिग्रह की समस्या को सुलझाओ, हिंसा की समस्या स्वतः सुलझ जाएगी।' हिंसा के पत्र-पुष्प पर ही प्रहार मत करो, उसकी जड पर भी प्रहार करो । जितना मेरापन कम, उतनी हिंसा कम। जितना मेरापन अधिक, उतनी हिंसा अधिक। यह सूत्र अहिंसा का महाभाष्य है। प्रस्तुत आगम में केवल अहिंसा का ही नहीं, परिग्रह और अपरिग्रह के विषय में सिद्धान्त स्थापित किए गए हैं और मूलस्पर्शी दृष्टि को विकसित करने का निर्देशन दिया गया है। Education intonational
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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