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________________ १२४ आचारांगभाष्यमम् १११. दुहओ छेत्ता नियाइ। सं०-द्वितः छित्त्वा निर्याति । वह दोनों को छिन्न कर नियमित जीवन जीता है। भाष्यम् १११-स भिक्षः राग द्वेषञ्च उभयमपि वह भिक्षु राग और द्वेष दोनों का छेदन कर नियमित जीवन छित्त्वा नियतं याति-नियमितं जीवनं जीवति । जीता है । अनेषणीय के ग्रहण में प्रिय और अप्रिय भाव ही निमित्त अनेषणीयग्रहणे प्रियाप्रियभावावेव निमित्तं भवतः। बनते हैं, इसलिए दोनों के वर्जन की बात कही गयी है। तेन द्वयोरपि वर्जनदिक सूचिता। ११२. वत्थं पडिग्गह, कंबलं पायछणं, उग्गहं च कडासणं । एतेसु चेव जाएज्जा। सं०-वस्त्रं प्रतिग्रहं कम्बलं पादप्रोञ्छनं अवग्रहं च कटासनम् । एतेषु चैव याचेत । वह वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछन, अवग्रह और कटासन-इनकी हो याचना करे । भाष्यम् ११२--स भिक्षुः वस्त्रं, प्रतिग्रहः', कम्बलं, वह भिक्षु वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछन, अवग्रह और कटासन पादप्रोञ्छनं, अवग्रहः, कटासनञ्च-एतेषु' जीवन- -जीवन-निर्वाह के साधनभूत इन पदार्थों की ही याचना करे तथा निर्वाहसाधनभूतेषु वस्तुषु याचनां कुर्यात् । अन्यपदार्थ- अन्यान्य पदार्थों की याचना की प्रवृत्ति का निरोध करे। सम्बद्धा याचनाप्रवृत्ति निरुन्ध्यात् । अवग्रहः-स्थानम् । अवग्रह का अर्थ है-स्थान । ११३. लद्ध आहारे अणगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं । सं०-लब्धे आहारे अनगारः मात्रां जानीयात्, तद् यथेदं भगवता प्रवेदितम् । आहार प्राप्त होने पर मुनि मात्रा को जाने, भगवान् ने जैसे इसका निर्देश किया है। भाष्यम् ११३--अनगारः लब्धे आहारे मात्र अनगार आहार को प्राप्त कर उसको खाने की मात्रा को जाने । जानीयात् । सा कियती भवति? इति जिज्ञासायां खाने की वह मात्रा कितनी होनी चाहिए- इस जिज्ञासा के समाधान सूत्रकारो निदिशति--यथा इयं भगवता प्रवेदिता। में सूत्रकार कहते हैं-'भगवान् ने जैसे इसका निर्देश किया है।' अत्रापि मात्रायाः स्पष्ट निर्देशो नास्ति । भगवत्यामस्या इस कथन में भी आहार की मात्रा का स्पष्ट निर्देश नहीं है। भगवती निर्देश एवमुपलभ्यते - सूत्र में इसका निर्देश इस प्रकार मिलता है० अट्र कुक्कूडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारमाहारे- ० मुर्गी के अण्डे जितने आठ कवल का आहार करने वाला माणे अप्पाहारे, अल्पाहारी होता है। ० दुवालस कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहार- ० मुर्गी के अण्डे जितने बारह कवल का आहार करने वाला माहारेमाणे अवड्डोमोयरिए, अपार्ध (आधे से कुछ कम) अवमौदर्य करने वाला होता • सोलस कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारमाहारे माणे दुभागप्पत्ते, • चउव्वीसं कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहार माहारेमाणे ओमोदरिए, ० बत्तीस कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारमाहारे- ___माणे पमाणपत्ते, ० मुर्गी के अंडे जितने सोलह कवल का आहार करने वाला आधा ____ आहार करने वाला होता है। • मुर्गी के अंडे जितने चौबीस कवल का आहार करने वाला अवमौदर्य --कुछ कम खाने वाला होता है । . मुर्गी के अंडे जितने बत्तीस कवल का आहार करने वाला पूरे प्रमाण से आहार करने वाला होता है। - - १. एत्तो बत्थेसणपातेसणाओ निज्जूढाओ (आ०चू०पृ० ८०)। २. एत्तो सुत्ता सेज्जा णिज्जूढा (वही, पृ०८०)। ३. 'एतेषु' इति पदस्य आधारः ॥१८,३९ सूत्रयोर्द्रष्टव्यः । ४. अंगसुत्ताणि २, भगवई ७५२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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