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आचारांगभाष्यम असंयमी पुरुष अपने लिए, पुत्र, पुत्री, वध, ज्ञाति, धाय, राजा, दास, दासी, नौकर, नौकरानी के निमित्त आतिथ्य, उपहार, सायंकालीन भोजन और प्रातःकालीन भोजन के लिए नाना प्रकार के शस्त्रों से कर्म-समारंभ-अग्नि का समारंभ करते हैं।
भाष्यम् १०४—मनुष्येण विरूपरूपैः-नानाप्रकारैः मनुष्य अपने लिए, पुत्र, पुत्री, वधू, शाती, धाय, राजा, दास, शस्त्रैः लोकस्य'---अग्नेः सम्बन्धिनः पाककर्मसमारम्भाः दासी, नौकर, नौकरानी के निमित्त आतिथ्य, उपहार, सायंकालीन क्रियन्ते, तद् यथा-आत्मनः, पूत्राणां, दुहितणां, भोजन तथा प्रातःकालीन भोजन के निष्पादन में नाना प्रकार के शस्त्रों स्नुषाणां, ज्ञातीनां, धात्रीणां, राज्ञां, दासानां, दासीनां, से अग्नि का समारंभ कर पकाने की प्रवृत्ति करता है। कर्मकराणां, कर्मकरीणां निमित्तं आदेशाय, पृथक् प्रहेणकाय, श्यामाशाय, प्रातराशाय । आदेशः-आतिथ्यं यज्ञो वा'।
आदेश का अर्थ है-आतिथ्य अथवा यज्ञ । प्रहेणकम्-उत्सवे दीयमानं मिष्टान्नम्।
प्रहेणक का अर्थ है-उत्सव में उपहार स्वरूप दी जाने वाली
मिठाई। श्यामाशः-श्यामा रात्री। सायंकालीनं भोजनं श्यामाश-श्यामा का अर्थ है-- रात्री । श्यामाश का अर्थ हैसायमाशः इति यावत् ।
सायंकालीन भोजन । इसे सायमाश भी कहा जा सकता है। १०५. सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसि माणवाणं भोयणाए।
सं०-सन्निधि-सन्निचयः क्रियते इहैकेषां मानवानां भोजनाय । वे कुछ लोगों के भोजन के लिए सन्निधि और सन्निचय करते हैं।
भाष्यम् १०५-एतेषां पुत्रादीनां निमित्तं केषाञ्चिद् मनुष्य पुत्र आदि के निमित्त तथा कुछ अन्य लोगों के भोजन अन्येषां मानवानां भोजनाय सन्निधि-सन्निचयोऽपि के लिए भी सन्निधि तथा सन्निचय करता है। क्रियते ।
संग्रहस्य मनोवृत्तिः मूलमनोवृत्तिरस्ति। परिवारः संग्रह की मनोवृत्ति मूलमनोवृत्ति है । परिवार उस वृत्ति की तस्या वृत्तेः प्रयोगभूमिर्भवति। मनुष्यः परिवारस्य प्रयोगभूमि है । मनुष्य परिवार की समृद्धि के लिए महानतम संग्रह समृद्धये महान्तं संग्रहं करोति इति ।
करता है, यह इसका तात्पर्य है ।
१०६. समुदिए अणगारे आरिए आरियपणे आरियदंसी अयं संधीति अदक्ख ।
सं0-.-समुत्थितः अनगारः आर्यः आर्यप्रज्ञः आर्यदर्शी अयं सन्धिः इति अद्राक्षीत् । आर्य, आर्यप्रज्ञ, आर्यदर्शी और संयम में तत्पर अनगार ने 'यह विवर है'-ऐसी अनुभूति की है।
भाष्यम् १०६-अहिंसायाः स्वादविजयस्य च अहिंसा और स्वाद-विजय की साधना के लिए तत्पर मार्य, साधनाय समुत्थित आर्य आर्यप्रज्ञ आर्यदर्शी अनगार अयं आर्यप्रज्ञ, आर्यदर्शी अनगार ने यह–सन्निधि-सन्निचय संधि हैसन्निधि-सन्निचयः सन्धिरिति अद्राक्षीत ।
ऐसा अनुभव किया है। १. अत्र लोकपदं अग्निसूचकमस्ति । इदं पदं ११३९ सूत्रे ७७) । वृत्तौ 'आएस' पवस्य अर्थः आतिथेयः कृतोस्ति-- जलस्य सूचकं तथा ११६६ सूत्रे अग्निसूचकं विद्यते । अत्र
आदिश्यते परिजनो यस्मिन्नागते तदातिथेयाय"......... पाकप्रकरणे अस्य अग्निसूचकत्वं स्वाभाविकम् ।
(आचारांग वृत्ति, पत्र ११८) । तत्कालीनयज्ञप्रधानपरंपरायां २. आप्टे, आदिश्-A Sacrifice offered to a parti
आदेशपदस्य यज्ञवाचकत्वमपि नास्ति असंगतम् । cular deity.
३. आप्टे, प्रहेणकम्--Sweetmeats distributed at चणिकारेणापि यज्ञस्य उल्लेखः कृतः- अप्पणो चेव कोइ festivals. चूर्णी-पहेणंति वा उक्खित्तभत्तंति वा एगट्ठा यागं करेंति । (आ. चू. पृ.७७)
(आचारांग चूणि, पृष्ठ ७५)। किन्तु आवेशस्य अर्थः भिन्नः कृतोऽस्ति-आदिसति आएसं ४. द्रष्टव्यम् --आयारो, २।१८। वा करेति, जं भणितं--पाहुणओ (आचारांग चूर्णि, पृष्ठ
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