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सं० यस्ते पजीवनिकायास्त्रसमारम्भाः परिज्ञाताः भवन्ति स खलु मुनिः परिज्ञातकर्मा । इति ब्रवीमि । जिसके यह जीवनिकाय सम्बन्धी शस्त्र समारम्भ परिवात होते हैं, वही मुनि परिजातकर्मा ( कर्म-रागी) होता है। - ऐसा मैं कहता हूं ।
माध्यम् १७६-१७७ – पूर्ववद् द्रष्टव्ये (३३-३४) सूत्रे । अत्र पजीवनिकाय शस्त्रसमारम्भा इति विशेषः ।
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आचारांगभाष्यम्
पूर्व के ३३, ३४ सूत्रों में पृथ्वीकायशस्त्र समारंभ की बात आई है। यहां छह जीवनिकाय का शस्त्र - समारंभ परिज्ञात है। इतनासा यहां अन्तर है ।
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