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________________ सहृदयी उदारता और विशालता---धार्मिकताकी कट्टरताके उस युगमें विशाल हृदय जलधिमें, प्रेमल और अन्य धर्म प्रति उदारता एवं सहिष्णुताकी लहरें आपके उद्बोधनों वार्तालाप एवं साहित्यमें तरंगित होती अनुभूत होती हैं, जो आपने प्राप्त की हुई जैनधर्मकी देनरूप गुणानुरागिता और गुण पूजाके श्रेष्ठतम आदर्शोंका परिपाक हैं। कुल-जाति-देश-धर्मके मतमतांतरोंको लांघकर आपने घोषित किया कि, “सच्चरित्र ही सच्ची मनुष्यताका मापदंड है ।..........कोई पुरुष या स्त्री, किसी भी जाति या धर्मका क्यों न हों, जो ईच्छा निरोधपूर्वक शीलका पालन करता है वही श्रेष्ठ गिना जाता है ।"८५ आपके दिलमें केवल जैनधर्मकी उन्नति और समुत्थान की ही लगन नहीं थी, लेकिन सारे समाजके अभ्युदयकी उत्कट आकांक्षा थी। आपके ही शब्दोमें- “जैसे अयोग्य भूमिमें वोया वीज फलीभूत नहीं , होता और विना नींवका भव्य प्रसाद स्थिर नहीं होता वैसे विना योग्यताके, साधु या गृहस्थ धर्म भी प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए सभी भित्रभित्र मतावलम्वियोंका चाहिए कि वे अपनी जाति और अपने मतकी बुराइयोंको त्याग करते हुए अपनेमें योग्यता प्रकट करके धर्मके अधिकारी वनें ।........नाना प्रकारके धर्मशास्त्रीका अवलोकन करनेकी आवश्यकता इसलिए है कि पक्षपात रहित होकरके माध्यस्थ भावसे सर्व मतोंके शास्त्रोंका अध्ययन करके तत्त्वविचार करनेसे जीवको सत्य मार्गकी प्राप्ति होती है ।"८६ आगे चलकर अवतारोंके प्रति अपने मनोभाव प्रदर्शित करते हुए लिखते हैं कि- “हिन्दुस्तानमें थोड़े थोड़े काल पीछे ईश्वरको अवतार लेकर अनेक तरहके विरुद्ध पंथ चलाने पड़ते हैं । न जाने हिन्दुस्तानियों पर परमेश्वरकी क्या कृपा है जो बह जल्दी-जल्दी अवतार लेता है" । विश्व शान्तिदूत :- आपके विलक्षण मार्गदर्शनानुसार आचरण करके स्थायी रूपसे विश्व स्तरीय धार्मिक शांति प्रस्थापित हो सकती है। "प्रेक्षावानाको................सर्व शास्त्रोंके कहें तत्त्वोंकी प्रथम-श्रवण, पठन मनन, निदिध्यासनादि करके जिस शास्त्रका कथन युक्ति प्रमाणसे बाधित हों, उसका त्याग कर देना चाहिए और वाधित न हों उसे स्वीकार कर लेना चाहिए परंतु मतोका खंडन-मंडन देखकर किसी भी मत पर द्वेष वृद्धि कदापि नहीं करनी चाहिए। आज संभवतः सामान्य प्रतीत होनेवाली उपरोक्त बातें तत्कालीन क्रान्तिवीरों और युग सुधारकों के लिए अत्यंत दुष्कर परिश्रम साध्य थीं। अधुना दृश्यमान अद्यतन जैन समाजका मानचित्र, नवयुग निर्माता-प्रचंड़ भास्करकी दीप्रज्योत और महासौम्य एवं दर्शनीय संयम तेज़रूप जिनशासन गगनांचलके झलहल ज्योतिर्धरके दूरदर्शी एवं पारदर्शी सुदीर्घ नेत्रकमलोंमें प्रतिबिम्बित अखंडश्रद्धा और उज्ज्वल प्रकाशकी देन थी। उन्हींका सामर्थ्य था। उन्हींका हौसला था। उन्हींका अध्यवसाय था। आपने अहसास किया कि विश्वमें फैल रही हिंसा-असमानता और पक्षपात ही जगतकी अशान्तिके लिए जिम्मेदार है। उनके निवारणके लिए जैनादर्श-अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त ही अमोघ शस्त्र हैं। क्योंकि अहिंसाके कारण प्राणीमैत्री, अपरिग्रह द्वारा त्यागवृत्ति और अनेकान्तसे निष्पक्ष दृष्टि प्राप्त होगी तब ही विश्वशांति संभवित बन सकेगी। इस प्रकार उस खंडन-मंइनके युगके आधुनिकरण कर्ता-उस आधुनिक भगीरथने अपने दो हाथोसें दो प्रकारकी----(१) खंडनात्मक -अर्थात् कुरीतियाँ, अंधविश्वास, मिथ्या आंडबरादिको हटाने स्वरूप विध्वंसात्मक (२) मंडनात्मक (70) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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