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साहित्यको समृद्ध किया। इसके अतिरिक्त सैंकड़ों प्राचीन ग्रन्थोंको भंडारोंसे निकलवाकर उनकी नकलें करवायीं और उनका वाचन एवं संशोधन किया, जिनमें निम्नलिखित ग्रंथ विशेष उल्लेखनीय हैं-शब्दाम्भोनिधि-गंधहस्ति महाभाष्य, वृत्ति-विशेषावश्यक, वादार्णव, सम्मति तर्क, प्रमाण प्रमेय मार्तंड, खंडनखंडखाद्य-वीरस्तव, गुरु-तत्त्व विनिर्णय, नयोपदेशामृततरंगिणि वृत्ति, पंचाशक सूत्रवृत्ति, अलंकार-चूड़ामणि, काव्य प्रकाश, धर्मसंग्रहणी, मूलशुद्धि, दर्शनशुद्धि, जीवानुशासन वृत्ति, नवपद प्रकरण, शास्त्रवार्ता समुच्चय, ज्योतिर्विदाभरण, अंगविद्या इत्यादि.......६७
इस तरह अपनी लेखिनीको मुखरित करने के साथ साथ वाद-विवाद और विचारविमर्श या चर्चाओं द्वारा अनेक जीवोंको प्रतिबोधित करते हुए जिनशासनकी महती सेवामें यथायोग्य योगदान दिया-यथा-अंबालामें अनेक जैन-जैनेतर शास्त्रोंके संदर्भयुक्त विवेचनसे जैनदर्शनकी ईश्वरवादीता अथच आस्तिकताको मंडित करते हुए आर्य समाजी पं.लेखारामजीको संतुष्ट किया;" तो लुधियानाके कट्टर आर्यसमाजी और प्रखर प्रचारक ब्राह्मण युवक कृष्णचंद्रजीको आपकी तर्कबद्ध-तेजस्वी ज्ञानज्योतिने आजीवन आपका अनन्य चरणोपासक और जैन दर्शनके प्रति दृढ़ आस्थावान बना दिया; और मालेरकोटलाके लाला गोंदामलजी, जीवामलजी आदि अनेक जैनेतरोंको मूर्तिपूजक जैन बनाया:° साथमें मुन्शी अब्दुल रहमानको 'भिक्षावृत्ति'-यह परोपकार परायण साधुओंका शास्त्रोत आचार है, ऐसा समझाकर आजीवन मांस-मदिरादिका सर्वथा त्याग करवाया;" जबकि रायकोटमें जैन-जैनेतर समाजमें वेधक व्याख्यान वाणीसे उपदेश देकर धर्मबोध करवाया और मूर्ति पूजाका प्रचार किया। ७२ जालंधरमें आर्य समाजी ला. देवराज और मुन्शीरामको 'ईश्वरके सृष्टिकर्तृत्वका' खंडनकर-साक्षी रूपका मंडन करके 'कर्म ही जीवके लिए फल प्रदाता' किस तरह है और 'इश्वर फल प्रदाता' क्यों नहीं-इन बातोंका तर्क बद्ध समाधान दिया७३ सम्यक् चारित्रकी निरतिचारपने परिपालना करते हुए, चारित्रवान्-संयमके खपी ऐसे साधकोंकी साधनामें सदैव तत्पर रहे हैं। संयमकी ईच्छुक बहनको १९५१में जीरामें दीक्षा देकर 'श्री उद्योतश्रीजी' नामसे घोषित किया और १९५०में पट्टीमें अपने साथके नवीन साधुओं को छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रदान किया, जिनकी उन्हीं दिनोंमें दीक्षा हुई थी०५
इस प्रकार अनेक ग्राम नगरोंके हज़ारों नरनारियोंको "ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्षः" के स्वरूपको समझाकर आत्म कल्याणकारी “सम्यक दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः" रूप प्रशस्त मार्गकी ओर प्रेरित करके स्व-परके सम्यकत्वको शुद्ध करनेका सफल प्रयत्न आजीवन करते रहें। इन सबके केन्द्रमें जीवनके प्रत्येक पलको पूर्ण रूपसे आत्मिक कल्याणरूप कर्म निर्जराकी सम्यक आराधनामें बिताने के लिए यथाशक्य और यथाशक्ति पालन करने-करवानेकी मनोभावना झलकती है। बहुमुखी प्रतिभाके स्वामी का गुणावलोकन (नवयुग निर्माता) :
“शैले शंले न माणिक्य, माक्तिकं न गजे गजे"
साधवो नहि सर्वत्र, चन्दनं न वने वने ।” जैसे हर पर्वतमें माणिक्य रत्न नहीं होता, न प्रत्येक हाथीके कुंभस्थलसे मोती ही झरते
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