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________________ था। लोगों के अज्ञानका पर्दा हट गया था। पढे लिखे श्रद्धालु आत्मार्थी श्रावक ढूंढ़क पंथका त्याग कर धड़ाधड़ जैन धर्म अंगीकार कर रहे थे। वातवरण यहाँ तक उत्तेजित हो गया था कि पूज्यजीको आहार-पानी आदि न मिलने के संभावित इरसे पंजाबसे मारवाडादि अन्यत्र विहार कर जानेके विचार आने लगे । ३४ ढूंढ़कमत त्याग---इस भाँति क्रान्तिकारी---बवंडर सदृश पूरजोश धार्मिक आंदोलनोमें यशस्वान् ज्वलंत विजयी, श्रावकोंकी शुद्ध जैनधर्म-मूर्तिपूजादि-में आस्थाके मूलको दृढ़ एवं स्थिर करनेवाले श्री आत्मारामजी म.सा. और उनके साथियोंको इस शास्त्र बाह्य-घृणित कुवेश-ढूंढ़क साधुवेशका . परित्याग करके किसी सुयोग्य निर्ग्रन्थ-साधुका शिष्यत्व स्वीकारनेकी आवश्यकताका एहसास होने लगा, ताकि श्रावकोंको प्रत्येक दृष्टिसे सच्ची जैन साधुताका ज्ञान हो सके। अतः वि.सं. १९३१ के चातुर्मासोपरान्त लुधियानामें सभी मिले। विचार विमर्थ करते हुए गुजरातकी ओर जानेका निश्चय किया जिससे अति विशाल जैनसंघसे भी परिचय हो सकें। अथवा मानो पंजाब श्री संघकी सत्य धर्म प्रति दृढ़ आस्थाकी नींव पर अब विविध धर्मानुष्ठानोंके और धर्माचरणोंके विशाल और व्यवस्थित भवन निर्माणके लिए साधन जुटाने-अति दुर्गम एवं दूरस्थ स्थानों की तरफ प्रस्थानका निश्चय किया गया। आपके इस प्रस्थान के मुख्य तीन ध्येय हृदयस्थ थे (१) प्राचीन जैन परंपराके साधुवेशको विधिपूर्वक धारण करना (२) प्राचीन तीर्थों की यात्रा (३) तदनन्तर पंजाब वापस लौटकर विशुद्ध जैन परंपराकी स्थापना करना। ३५ गुजरातमें पर्दापण---तदनुसार लुधियानासे महाभिनिष्क्रमण हुआ। मानो संसार-त्यागसे भी दुर्दमदुर्द्धर्ष साम्प्रदायिक फिरके बंधीसे मुक्तिका शुभारम्भ हुआ। विहार करते करते मालेर कोटला, सुनाम होते हुए हाँसी जाते समय रास्तेमें एक रेतके टीले पर मुँह पर बंधी मुहपत्तिका त्याग किया और हाँसी-भिवानी होते हुए मारवाड़की ओर पधारें। जीवनमें सर्व प्रथम पालीके श्रीनवलखा पार्श्वनाथजीके मंदिरमें परमात्माके दर्शन करके अपने . आपको भाग्यवान बनानेका प्रारम्भ किया। वहाँसे वरकाणा, नाडोल, नाडलाई, राता महावीर, राणकपुर, आबू-देलवाडा-अचलगढ़, सिद्धपुर, भोयणी आदि अनेक मारवाड गुजरातके तीर्थों की, आत्माको परमपावन करनेवाली और कर्मज्वालासे जलती हुई आत्माकी हुताशको शांत करके कर्मनिर्जरा रूप शीतलता प्रदान करनेवाली अमोघ-अमूल्य-अद्भूत-अपूर्व यात्रा करते हुए आप सोलह साधु गुजरातके सुप्रसिद्धनगर अहमदाबाद पधारें। आपकी धार्मिक क्रान्तिके अरुणोदयकी आभा आपसे पूर्व ही मारवाड़-गुजरातादि अनेक स्थानों के श्रावकोंके नेत्रोंको उन्मिलित कर रही थी। वे बड़ी उत्कंठासे और आतुरतासे उस दिनकी प्रतीक्षा कर रहे थे, जब आपकी ज्ञानामृत रसीली व विद्वत्तापूर्ण प्रवचनधाराका लाभ प्राप्त कर सकें। आपके प्रति सम्मानयुक्त-अनूठी-अंतरंग भक्तिके भाव तब दृश्यमान होते हैं, जब अहमदाबादके नगरशेठ, प्रमुख श्रावकों के साथ करीब तीन हज़ार श्रावकोंको लेकर उचित स्वागतार्थ तीन कोस तक अगवानी करने आये और बड़े हर्षोल्लास एवं धूमधामसे अभूतपूर्व नगरप्रवेश करवाया। तदनन्तर (59 Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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