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प्रासंगिक इस शोध प्रबन्धके प्रकाशनार्थ चल रहे विचार विमर्श में यह अभिप्राय उभर आया कि इसे दो विभागमें प्रकाशित करवाया जाय । स्वयं मैंने भी महसूस किया कि, विषय निरूपण को लक्षित करते हुए, पठन सुविधा निमित्तइसे दो विभागमें प्रकाशित करना अधिक समीचीन होगा । अत: प्रथम चार पर्व - व्यक्तित्वका आलेखन व समस्त गद्य साहित्यान्तर्गत प्ररूपित विषयवस्तुका संक्षेपन -को प्रथम विभाग "सत्य दिपककी ज्वलन्त ज्योत" दारा एवं अंतिम चार पर्व - कृतित्व अर्थात् श्रद्धेय आचार्य प्रवरश्रीके गद्य-पद्य वाङ्मयका विहंगावलोकन एवं अन्य विददर्यो से तुलनात्मक समीक्षाको द्वितीय विभाग "श्री विजयानंदजीके वाङ्मयका विहंगावलोकन'' द्वारा और अंतिम पर्व 'उपसंहार' को दोनों विभागमें समाविष्ट करके इस शोध प्रबन्धको दो विभागमें प्रकाशित करवाया जा रहा है।
किरणयशाश्रीजीम.
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