SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनेतर शास्त्रोंके संदर्भ देकर स्पष्टीकरण किया। “ईश्वर जगत्कर्तृत्व" -विषयमें आर्य समाजी ला. देवराज आर मुन्शीरामजी से शास्त्राधारित वार्तालापसे संतुष्टी की। इस प्रकार अनेक जैन-जेनेतरोंसे सम्मान-प्रतिष्ठादि प्राप्त किया। एकादश-लाभ स्थान है। सत्पुरुषोंकी सेवा, स्व पराक्रमसे लाभ, मित्रोंसे लाभ, आराधना-साधनासे लाभका योग इस स्थानके अभ्याससे ज्ञात होता है। आपकी जन्म कुंडलीमें एकादश स्थानका अधिपति लाभेश-गुरु उच्चका बना हुआ होने के कारण उपरोक्त सर्वांगीण लाभ आपके जीवन-दर्पणमें स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। कईंबार शिष्यादि प्राप्ति लाभ, कभी धार्मिक स्थानादिके लिए विपुल धनराशि एवं अन्य आवश्यक सामग्रीका आकस्मिक लाभ प्राप्त होता रहता है। लाभेश-गुरुकी नवम-पूर्ण-दृष्टि धन स्थानमें शुक्र-सूर्यकी युति भी आपके लिए शुभ फलदायी हुई, जिससे कलाप्रियता प्राप्त हुई, और आपका व्यक्तित्व-जीवनपथ-उदारता, सदाचार, दयालुता, पवित्रता, उत्तम निर्णायक शक्ति, अगाध धैर्यादि अनेकानेक गुण कुसुमों के परिमलसे सुवासित है। द्वादश स्थान-इसे मोक्ष स्थान अथवा व्यय स्थान कहते हैं। इस स्थानसे रोगहानि-व्यय-विदेशयात्रा आदिका निर्णय किया जा सकता है। आपकी जन्मकुंडलीमें इस स्थानमें कोई ग्रह बिराजमान नहीं है। लेकिन मकर राशि है। इसका स्वामी (व्ययेश) शनि है, जो भाग्य स्थानमें उच्चका बनकर बिराजित है। इसके अतिरिक्त व्यय स्थान पर मंगल और गुरुकी प्रतियुति होनेसे अनेक विघ्नसंघर्षादिके बाद भी अंततोगत्वा-चाहे विलंब भी क्यों न हों-विजयशील निश्चित रूप से आप ही बनते रहते थे। सतत कार्यशीलता-कर्मठता-पुरुषार्थ, कठोर परिश्रम, लगन, भगीरथ प्रयत्न, यमनियम--संयमसे प्राप्त अतुल आत्मिक एवं बौद्धिक शक्ति, निर्मल भक्ति---इन सर्वका एक नाम अर्थात् शनि-चंद्रकी प्रतियुति। व्ययेश शनिकी भाग्य स्थानसे पराक्रम स्थान स्थित चंद्रके साथ प्रतियुति-आपको, आपके पीछे विश्वको पागल बनानेवाली शक्ति प्रदान करती है। शनिसे प्राप्त भाग्यलाभ स्थिर होता है। शनि-समयका प्रतीक है, शनि-विवेक है, शनिभाग्यविधाता है; शनि-शिव याने कल्याणमय है; बिना शनिका जीवन, बिना एक-आदिअंकके शून्य समान है। शनिके बिना अकेला चंद्र केवल वैचारिक तरंगें उत्पन्न करता है। ठोस कार्य शक्तिके लिए शनिका साथ अति आवश्यक है।- ऐसी प्रतियुति आपके जन्म कुंडलीके ग्रहों में होनेसे ही आपका जीवन 'लाखों में एक '. सदृश प्रशस्त, प्रशंसनीय, अनुमोदनीय बन गया है। इस प्रकार जन्मकुंडलीमें उपचय योग, परिवर्तन योग, नीचभंग राजयोग, नवपंचमयोग, बलवान लग्नेश (शनि), योगकारक उच्चका शुक्र, उच्चका गुरु, शुक्र-सूर्य एवं (114 Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy