________________
उस भाव पर शुभ ग्रहकी दृष्टि हों तब उसका अच्छा फल (सुख) मिलता है। (जिस भावका स्वामी अपने स्थानसें ६-८-१२ वें स्थान पर यदि पापग्रह होकर रहा है तव उस स्थानका अशुभ फल देता है, और, यदि शुभ ग्रह हों तब अच्छा या बुरा कोई भी फल नहीं मिलता है।) ५. जिस भावका स्वामी लग्नसे केन्द्र त्रिकोण (९/५) में हों और वह शुभ ग्रहसे दृष्ट हों, उस स्थानका अथवा जिस भावका स्वामी उच्चका, मुल त्रिकोणका, स्वगृही या मित्रके गृहका, बलवान हों तब उस स्थानका अच्छा-शुभ फल प्रदान करता है। ६. जिस भावका स्वामी अपने स्थानसे ९-५-४-७-१० वें स्थानमें हों, उस भावका स्वामी, शुभ ग्रहों के साथमें-पाप ग्रह एवं पापग्रह की दृष्टि रहित बिराजमान हों उस स्थानका अच्छा फल मिलता है (ऐसे न होने पर उस भावका अच्छा फल देने में वह असमर्थ हैं) अथवा वह ग्रह, शुभ ग्रह और पापग्रह-दोनों के साथ बिराजित हों अथवा शुभ या पापग्रहसे दृष्ट हों, तब उसका अच्छा फल कम हो जाता है। ७. जिस भावका स्वामी आठवें या अस्तका, नीचका या शत्रुकी राशिका हों और वह शुभ ग्रहसे दृष्ट न हों वा साथमें न हों तब उस भावका सुख नष्ट हो जाता है। (इसी तरह जिस भावमें ग्रह होता है उससे लग्नादि प्रत्येकका फल मिलता है ।) ८. जिस भावका स्वामी ६-८-१२ वें स्थानमें हों या शत्रुकी राशिका, अस्तका, या निर्बल हों, तब उस स्थानका अच्छा फल नहीं मिलता है। ९. जो ग्रह ६-८-१२ वें स्थानमें हों या नवमांशमें नीच, शत्रु या पापग्रहकी राशिका हों, लेकिन वह नवमाशमें उच्चका मित्रके गृहका या शुभ ग्रहसे दृष्ट हों तब वह शुभ फल प्रदाता बनता है। १०. जिस भावका स्वामी जिस राशिमें हों, उस राशिका स्वामी ६-८-१२ वें स्थानमें हों, तब उस भावका अशुभ फल प्राप्त होता है, लेकिन उस राशिका स्वामी उच्चका, मित्र या स्वगृही हों तब उस भावका शुभ फल प्राप्त होता है। ११. जिस भावमें २-३-११ वे भावके स्वामीकी राशि हों, उस भावका अच्छा फल प्राप्त होता है। जिस भावका स्वामी मित्रकी वा उच्च राशिमें बिराजमान हों और उस राशिका स्वामी अस्तका, शत्रु वा नीच राशिका न हों तब उस स्थानका अच्छा फल प्राप्त होता है। (भाव संबंधी शुभ फल अर्थात् उस स्थानसे प्राप्त अशुभ फलका नाश और शुभ फल-वृद्धि; अशुभ फल अर्थात् उस स्थानसे प्राप्त अशुभ फलकी वृद्धि और शुभ फलकी हानि वा नाश। उदा-षष्ठम भावका शुभ फल अर्थात् रोग, शत्रु आदिका नाश; श्वसुर एवं मातुल पक्षसे लाभ और षष्ठम भावका अशुभफल अर्थात् शत्रु-रोगादिमें वृद्धि; श्वसुर पक्षसे दुःख, मातुलादिसे हानि)
श्रीमद आत्मानंदजी महाराजजीकी जन्म कुंडली
और जीवन घटनाओं का मूल्यांकन श्री आत्मानंदजी महाराजजीका जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत १८९४-तदनुसार
(104)
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org