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अष्टम (आयु)
जहरीली चिंटियाँ, सर्पादि, जानवरसे,जंगलमें या चोरसे मृत्यु प्राप्त करता है।
नवम
(भाग्य-धर्म)
पाणी, जहरी ले जंतु, सादिसे या अन्यके हाथोंसे परदेशमें मृत्यु पाता है। व्रत-उपवासादि विविध धर्माचरण कर्ता, पवित्र तीर्थस्थान या बनमें बसनेवाला होता है। मनोहर कुएँ, वाव, तालाब, आदि पानीके स्थान बनानेवाला दयावान, सत्पुरुष होता है। सेवा-खेती-शास्त्र-साधु पुरुषोंसे लाभ प्राप्त करता है।
स्वधर्म क्रिया रहित
और पर धर्मपालक. विनय रहित होता है। कूर, पापी, दुष्ट. पराक्रमी, हिंसक, नित्य निंदक होता है।
अत्यन्त विलासी, अपने चित्तसे या स्त्रीओंको मारनेसे अथवा पत्नी के जहर देनेसे मृत्यु होती है। स्त्री-धर्मकी सेवा करनेवाला, अनेक जन्मोंसे भक्ति-रहित, पाखंडी अन्य दर्शनीयोंका सहायक होता है। दुष्ट, भक्ति न माननेवाला, तुच्छ वीर्यवान, निर्धन होता है। घरमें उसकी पत्नीका हुक्म चलता है। अनेक आराधना, शास्त्रादिसे विनय-अद्भूत विवेकसे, लाभ प्राप्त करता है।
दसम
(कर्म)
ग्यारह (लाभ)
निंदासे अनेक मनुष्योंके बंधन वध-परिश्रमसे और विदेशगमन से लाभ प्राप्त करता है। संदेह रहित, रूपवान, अत्यंत क्रोधी, कुकर्मी, और चोरी करनेसे जातक निंदनीय बनता है।
बारह (व्यय)
देव-गुरु-पूजा, धर्मक्रिया, सत्पुरुष प्रशंसामें धन व्यय करता है।
स्त्रियोंमें उत्साहसे, विवाह आदि एवं उत्तम कार्योंसे, सूत्र प्रभाव या साधु संगतसे धन व्यय करता है।
प्रथम (लग्न)
तुला राशि कफ रोगी, सत्यवादी, स्त्रीसे प्रीति रखनेवाला, राजातुल्य, देवादि पूजनमें तत्पर पुण्यसे प्राप्त धनवान, पत्थर मिट्टीके बर्तन, खेती आदि से धन प्राप्ति,आपकर्मी धन भोगी होता है। दुष्टोंके साथ मित्राचारी, अत्यंत विषयी, कम संतति वाला होता है।
वृश्चिक राशि क्रोधी, आयुष्यवान, धर्मप्रेमी, राजाका पूज्य, गुणवान, शत्रुसे सदा विजयी होनेवाला होता है। स्वधर्म पालक, स्त्रीका भोगी देवगुरु भक्तिकारक, विचित्र वाणी बोलनेवाला होता है।
द्वितीय (धन)
धन राशि राजा तुल्य सुखी, कार्यदक्ष, देवगुरु प्रीतिकारक, सुखी मित्रोवाला, घोड़े जैसी जंघावाला धैर्यसे धन प्राप्ति, यशस्वी, तेल-घी आदि द्रव पदार्थों और धर्मविधि से द्रव्यलाभ प्राप्त करनेवाला। शूरवीरोंसे मित्राचारी, राजाका सेवक, स्व धर्मसे प्रसन्न चित्त, दयावान, रण संग्राममें चतुर लश्करी कार्य, घोडोंके व्यापार, स्व प्रताप निबंधसे, सेवासे सुख प्राप्त करता
तृतीय (पराक्रम)
चतुर्थ (सुख)
सरल स्वभावी, शुभकार्यमें चतुर, विद्यासे नम्र, सर्व मनुष्योंका प्रिय
दुष्ट और दरिद्र मित्रोंसे मैत्री, पापी, कजियाखोर, जो काममें बेदरकार हों उनसे विरोध रखनेवाला चंचल, इरपोक, सेवा परायण, गर्व रहित. पराक्रमी, छिद्रान्वेषी, कम अक्कलमनोहर, अच्छे स्वभाववाला, अनजाने में दोष करनेवाला, स्वधर्ममें नम्र और पुत्र रहित होता है।
पंचम (तनय)
सुंदर स्वभाववाले, मनोहर, स्वरूपवान, क्रिया युक्तयोग्य पुत्रवाला होता है।
विचित्र ईच्छावान्, शत्रुरहित, धनुर्धारी, सेवाप्रिय, राजासे मान प्रापक, पुत्रवान होता है।
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