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________________ पहुंचनेमें दक्ष, तीक्षण, विश्लेषणात्मक, चिन्तन-मनन शक्ति युक्त पैनी दृष्टिसे अध्ययनः शिलालेख, ताम्रपत्रादिके सूक्ष्म निरीक्षण; मनोरम प्रत्युत्पन्न मतिसे प्रश्नकर्ताको संतोषजन्य प्रसन्नतापूर्वक प्रत्युत्तर प्रदान करनेवाली पतिभाः सत्यनिष्ठ क्षत्रियोचित क्रान्तिकारी व्यक्तित्वका प्रताप; देशकालोचित विद्यासमृद्धि अर्थात् भूगोल-भूस्तर शास्त्रीय-वैज्ञानिक आदि तथ्योंको प्रामाणित रूपमें उद्घाटित करनेवाले, नूतन संशोधन एवं नूतन दृष्टियोंके उद्धरण-उदाहरणादिके परिप्रेक्ष्यमें उभारकर अनागत युगमें जैनशासनके स्थिरत्व और वर्द्धमानत्व हेतु जिम्मेदारियोंकी परख करते हुए जैनधर्म और दर्शन-सिद्धान्त और साहित्यका महत्त्व, प्रचीनता(शाश्वतता), और एकवाक्यता स्थापित की है । खंडन-मंडनके उस युगमें सर्व दार्शनिक आक्रमणोंका मुकाबला करनेके लिए मृत और जीवंत, जैन और जैनेतर, आगमिक साहित्यिक प्रमाण-शास्त्र संदर्भोके समूहोंके प्रचंड़ संग्रह और लाजवाब तार्किकताका प्रयोग उनके धार्मिकादि पूर्ववर्ती एवं समसामयिक ज्ञानाध्ययनके परिचयका द्योतक है, जो उनकी प्रशस्त साहित्यसेवा और समर्थ साहित्यिक प्रभ-विष्णुताको स्पष्ट करता है । लाला बाबूरामके शब्दोमें-“उनकी रचनायें जितनी विशाल, विद्वत्तापूर्ण और दार्शनिक हैं, उतनी ही सीधी-सादी-सरल और मनोरंजक गद्य साहित्य और उसका महत्व :- श्री आत्मानंदजीम.सा. के विशद वाङ्मयके बृहदंशको आवृत्त किया है उनके गद्य साहित्यने; जिसमें प्रतिपादित विषय पूर्णतः धार्मिक और दार्शनिक होने पर भी दार्शनिकताकी क्लिष्टता-नीरसता-गहन गंभीरतादि कलंकोंसे मुक्त, सरल और स्वच्छ शैलीमें, सुबोध उदाहरण, आकर्षण एवं मनोरंजक वर्णन द्वारा लोकभोग्य और लोकप्रिय बन चूके हैं। ऐसे ही उसमें धार्मिक जड़ता एवं एकांगी कट्टरताको छोड़कर उत्तमोत्तम-बौद्धिक परीक्षणमें अव्वल श्रेणि प्राप्त, लचीला तथा प्रशिक्षुको आत्मिक या जैविक उद्धारमें उपयुक्त हो सके वैसा दिलकश और आकर्षक है । पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती आदि भाषाके मुहावरें-लोकोक्तियाँ आदिके यथेष्ट उपयोगने उनकी रचनाओंको साहित्यिक प्रांजलता बक्ष दी हैं । “उन्होंने अपने ग्रन्थोंमें जैन मान्यताओंका यक्तिपूर्वक, वैज्ञानिक पद्धतिसे समर्थन किया है...... (ठीक उसी प्रकार) धार्मिक-पौराणिक-आगमिक-ऐतिहासिक-भौगोलिक-भूस्तरीय आदि विषयक प्रस्तपणायेंभी की गई हैं ।" ५. उनका साहित्य एक जौहरीकी अदासे परीक्षक दृष्टिसे परीक्षित करने पर उनके नैतिक उपदेशक, समाज सुधारक, मानवतावादी एवं सहनशील, करुणा-उपकारी, सच्चे महात्मन्-स्वरूपका दर्शन अनायास ही होता है। जो अध्येताको बाहयात्मासे अंतरात्माकी ओर, भौतिकतासे आध्यात्मिकताकी ओर, इहलौकिकतासे पारलौकिकताकी ओर, एवं एकान्तवादसे अनेकान्तवादकी ओर पुरुषार्थी बनाने में प्रेरक बन गया है । उनकी रचनाओमें छाया हुआ अंतर्चेतनाका प्रकाश अज्ञान एवं असत्यादिके लौकिक अंधकारको विदारण करके अलौकिक-उज्जाल-विकासशील-उन्नत समाजकी संरचनामें महता योगदान प्रदान करता है । __ यथा-आगमज्ञानसे अनभिज्ञ ज्ञानेप्सुको 'नवतत्त्व'से सम्बद्ध मूलागम-संदर्भोके सिंधु स्वरूप 'बृहत नवतत्त्व संग्रह'की भेंट दी: तो जैन दर्शनकी तत्त्वत्रयीका स्पष्ट-सुरेख-सत्य स्वरूप एवं इतर दर्शनके तत्सम्बन्धी विपरित स्वरूपके तुलनात्मक निरीक्षण हेतु “जैन तत्त्वादर्श" प्रस्तुत किया । 'सत्यार्थ प्रकाश की जैनधर्म और जैनधर्मी विषयक सरासर असत्य-प्रकाशाभास-अंधकारके निवारण कर्ता “अज्ञान तिमिर भास्कर"को प्रकट किया; तो भव्यजीवोंके सम्यक्त्वमें शल्यरूप श्री जेठमलजीकी रचना 'समकितसार से मुमुक्षु आत्माओंका मार्गदर्शक-राहबर 'सम्यक्त्व शल्योद्धार'को प्रेषित किया । जैनेतरोंकी अपेक्षा जैनाचार्योंके बुद्धि वैभवको प्रदर्शितकर्ता एवं जैन दर्शन व साहित्यकी परीपूर्णताका यथार्थ एवं तुलनात्मक निर्णय करवाने हेतु श्रेष्ठ आधार रूप छत्तीस दृढ़स्तम्भोंसे सुशोभित 'तत्त्व निर्णय प्रासाद'का निर्माण किया । चिकागोमें आयोजित 'विश्वधर्म परिषद में जैनधर्मके प्रमुख सिद्धान्तोंको विश्व समक्ष प्रस्फुटित करके उनका परिचय करवाने हेतु एवं जैनधर्मकी अन्यधर्मोके समकक्ष सक्षमताको प्रमाणित करनेके लिए “चिकागो प्रश्नोत्तर'का प्रणयन हुआ। चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग-१-२' द्वारा त्रिस्तुतिक मत प्रणेता श्री राजेन्द्र सूरिजीको चतुर्थ स्तुतिकी सार्थकता, प्रमाणिकता और प्राचीनता या (164) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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