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करुणरस-राजुलके साथ शादी निमित्त, श्री नेमिनाथ भगवंत बरात लेकर आते हैं; और 'पशुओंके वधका' निमित्त बनाकर बिना ब्याह किये लौट जाते हैं, तब विरहिणी राजुलके अंतरकी पुकार हमारी करुणाको झंकृत कर जाती है।
“शामरे.....ना जा रे...... नव भव केरो नेह निवारी, छिनकमें ना छटका जा रे ..... हुँ जोगन भइ नेह सब जारी रे, अंग विभूति रमा जा रे......
मैं दासी प्रभु तुमरे चरनकी, आतम ध्यान लगा जा रे..... (आ.वि.स्त.-९९) वीर-वीररस प्रायः युद्धभूमि आदिके वर्णनोंमे अधिक फबता है। कविने यहाँ आत्मा और मोहनीय कर्मका युद्ध वर्णित किया है जिसमें आत्माकी वीरता प्रदर्शित की है- . “मोह सुभट जग जेर करीने, करत कलोल अपारा
कर्मरायने विवर दियो है, चेतन होय हुश्यारा..... सात सुभटका नाश करे जो, तो तुम जीत नगारा,
नींद छोड़ जब चेतन जाग्यो, सात सुभट तीन मारा..... मोहराय बलहीन भयो है, अजयना छोड़त लारा,
__ कुमति कुटल विटल मदनासुर, राग-द्वेष निशिचारा..... भयानक-संसार समुद्रकी यथा स्थित भयंकर स्थितिका साक्षात् वर्णन.....
"मोह नदीकी गहरी धारा, भ्रमत फिरत गत चार मंझारा; मझधार अटकी मोरी नैया, अब प्रभु पार कीजोजी..... चार कषाय बड़वानल जामें, राग-द्वेष मगरादि नामें कुगुरु, कुघाट पड़ी मोरी नैया, वही थाम लीजोजी..... विषय इन्द्री वेला अतिभारी, काम भुजंग उठे भयकारी, मन तरंग वेग मोरी नैया..... पाप-पुण्य दोउ तस्कर घेर्यो, मैं चेर्यो प्रभु तुम गुण केरो,
तुम बिन कौन सहाइ मेरो, भवसिंधु पार कीजोजी..... बीभत्स-जीवके आहार-निहारका, जो जुगुप्सादायी चक्र चलता है, जिसे सुनकर आहार छोडनेका मन हो जाय और अनहारी बननेका विचार उद्भवित हों-उसका वर्णन करते है
“सब जगमांहि जेता पुद्गल, निगल निगल उगलाना।
छरद डार कर फिर तू चाखे, उपजत नाहि ग्लाना रे....." जीवके जन्मके पूर्वकी गर्भावस्थाकी स्थितिका चित्रण“माता उदर कूप रसकसमल, मनुष्य जन्ममें धारा..... जोनि द्वार खाल तुम निकसे, पुण्य उदय रखवारा....." अद्भूत-अरिहंत परमात्माके अष्ट प्रातिहार्यके अद्भूत वर्णनको श्रीपार्श्वनाथ भगवंतके स्तवनमें वर्णित किया है. “तीन छत्र प्रभुके पर रह कर, त्रिभुवन स्वामी जनावे रे.....
चामर कहत है, नीचे झुककर, उर्ध्वगति तुम जावे रे..... भामंडल पूंठे प्रभु दर्सण, तम मिथ्यातम नावे रे.....
अजुत योजन ध्वज आगल प्रभुके तिस उपर कर साखा रे....."आ.वि.स्त.२९ इस प्रकार भक्ति रस प्राधान्य पद्य रचनाओंके रचयिता-सहृदय-कवीश्वर द्वारा प्रायः सभी रसोंकी निष्पत्ति होते हुए रस निर्झरोंकी वैविध्यपूर्ण अमृतधारा प्रवाहित हुई है जो आस्वादकके अंतरको स्पर्श करते हुए हृदय कमल विकस्वर करनेमें नितान्त सफल हुई हैं। राग-रागिनियोंसे नवाजित अमर काव्यदेहका वैभविक वर्णनः---जीवनोल्लास वर्धक, सांगितिक तालबद्धता एवं लयबद्धता युक्त जीवन-संगीत, अनादिकालसे हमारा संगी रहा है, अर्थात् संगीत
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