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________________ सांस्कृतिक बिम्ब:- भक्त कविवरके दिलमें परमात्माके जन्म कल्याणककी याद से अत्यन्त प्रमोद और आह्लादके भाव उमड़ते हैं, और शरीक होनेके लिए हम सबको भगवंतको अभिषेक करवाते हैं तानमें मस्त होकर जन्म सफल कर रहे हैं - कवि मेरु पर्वत पर होनेवाले अरिहंत देवके स्नात्र महोत्सवमें साथमें ले चलते हैं जहाँ इन्द्र महाराजा कलश भर भर कर करते हैं और इंद्र-इंद्राणि आदि सकल सुर परिवार नाच-गानकी " कलश इंद्र भर ढारे, जिणंद पर कलश इंद्र भर ढारे.... हाथो हाथ हि सुर वर लावत, खीर विमल जलधारे...... गंधर्व किन्नर गण सब करते, गीत नृत्य स्वर तारे.. जिणंद "....स्ना . पू. ढाल ५ तथा “नाचत शक्र शक्री, हेरी माई, नाचत शक्र शक्री छं छं छं छं छननननन, नाचत शक्रशकी... हेरी भाई..... ढाल-६ इंद्र इंद्राणी करे नाटक संगीत धुनी, जय जय जिन जग तिमिर भानु तूं ..... घौं घौं धप मप मादल करत धुनी, सुंदर रंगीली गोरी गावत जिणंद गुनी, धन्य कृत पुण्य हम जन्म सफल आज, मेटे भव दुःख तुम बरननननन.....". ऐन्द्रिय बिम्ब- आत्मा चउगति परिभ्रमण करते करते अनंत पुण्यराशी प्राप्त्यानन्तर मनुष्य जन्म प्राप्त करता है। लेकिन आराधना साधनादिसे इसे सफल बनानेको भूलकर कैसे कैसे कृत्य करता है और आयुष्यांते उसके क्या हालात होते हैं, उसका तादृश चित्र चित्रित कियाहै Jain Education International “ आलम अजान मान जान सुख, दुःख खान, खान सुलतान रान अंतकाल रोये है । रतन जरत ठान, राजत दमक भान, करत अधिक मान अंत खाख होये है । केसुकी कली-सी देह, छीनक भंगुर जेह, तीनहिको नेह एह, दुःख बीज बोये है । रंभा धन धान जोर, अमित अहित भोर, करम कठन जोर, छारनमें सोये है ....” उ. बा. १० व्यावसायिक बिम्ब-जीवन व्यवहारको कृषि व्यवसायोपयोगी साधन एवं कृषकके जीवन चित्रणके माध्यम से आत्माके भ्रमको दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं। "खेती करे चिदानंद, अप बीज बोत वृंद, रसहे शींगार आद लाठी रूप लइ है । राग द्वेष तुव घोर, कसाय बलद जोर, शिरथी मिथ्यात भोर गर्दभी लगई है । तो होय प्रमाद आयु चक्रकार घटी लायु शिर प्रति प्रष्ट हारा कार कर खइ है नाना अवतार लार, चिदानंद वार धार, इत उत प्रेरकार, आतमकुं दइ है ।" ....उ. बा. २६ व्यावहारिक यह संसार एक युद्धभूमि है, जहाँ जीव मोहनीयादि कर्मोंसे जंग खेलता है, और अंततः जिनचंद के कृपादानसे विजयी बनता है । कुमतानो जादू जारा, जब ऋषभ जिणंद जुहारा.... " मोह सुभट जग जेर करीने करत कलोल अपारा, बपु भगरके धारणे बैठो, साधे सह परिवार।.... कर्मरायने विवर दियो है, चेतन होय हुश्यारा, सात सुभटका नास करे जो तो तुम जीत नगारा.... निंद छोड़ जब चेतन जाग्यो, सात सुभट तीन मारा, मोहराय बलहीन भयो है, अजयणा छोड़त लारा.... जयो जिनचंद आनंदके दाता, सघरे काज सुधारा, आतमचंद आनंद भयो है भवोदधि पार उतारा...... लि. ल. ७ मनोभावाधारित-अतः कविश्री हमें यह प्रेरणा देते है कि इस संसार समुद्र में जीव अशरण दीन और अनाथ बनकर भटक रहा है, जिसका एक अरिहंत परमात्माके बिना कोई त्राता नहीं । " साजन सुहाये लाख, प्रेमके सदन बीच हसे मोह फसे कसे नीके रंग लसे है । माननीके प्रेम लसे फसे धसे कीच बीच मीचके हिंडोले हीच मूढ रंगर से है । चपला सी झमक अनित बाजी जगतकी रुंखनमे वास रात पंखी चह चसे है । मोहकी मरोर भोर ठानत अधिक ओर छोर सब जोर सिर काल बली हसे हैं ।” नव.सं. १६१ " ..... 76 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.002550
Book TitleVijayanandji ke Vangmay ka Vihangavalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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