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________________ अर्थ : और वहाँ (स्वर्ग) मैं दुर्लभ कुमार का जीव देव की आयु पूर्ण करके पुण्य के प्रभाव से तालाब में हँस की तरह रानी कूर्मा के उदर में अवतीर्ण/प्रविष्ट हुआ। रयणेण रयणखाणी जहेव मुत्ताहलेण सुत्तिउडी। तह तेणं गब्मेणं सा सोहग्गं समुव्वहइ।। 108 || अर्थ : जिस तरह रत्नों से उनकी खान (तथा) मुक्ताफल से (मणियों से) सीपदल सौन्दर्य को धारण करते हैं, उसी तरह वह रानी उसके (दुर्लभकुमार के जीव के) गर्भ में आने से सौन्दर्य को धारण करती है। गब्मस्सणुभावेणं धम्मागमसवणदोहलो तीसे। उप्पन्नो सुहपुण्णोदएण सोहग्गसंपन्नो।। 109 ।। अर्थ : गर्भ के प्रभाव से (और) शुभ पुण्य के उदय से उस कूर्मारानी के (मन में) धर्म-आगम के श्रवण का सौभाग्य युक्त दोहद (इच्छा) उत्पन्न हुआ। तो तेणं नरवइणा छदंसणनाइणो नयरमज्झे। सद्दाविया जणेहिं कुम्माए धम्मसवणकए ।। 110 ।। अर्थ : तब उस राजा (महेन्द्रसिंह) ने (रानी कूर्मा के लिए) धर्म श्रवण के निमित्त से लोगों (सेवकों) द्वारा नगर में रहने वाले षड्दर्शन के ज्ञाताओं (जानकारों) को बुलवाया। ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलाइविहिधम्मा। निअपुत्थयसंजुत्ता संपत्ता रायभवणम्मि।। 111।। अर्थ : स्नान करके, कौतुक और मंगलादि विविध धार्मिक क्रिया करके (तथा) पूजा की क्रिया करके अपनी पुस्तक (धार्मिक ग्रन्थ) सहित (वे ज्ञानी) राजभवन में पहुंचे। कयआसीसपदाणा नरवइणा दत्तमाणसंमाणा। भद्दासणोवविट्ठा नियनियधम्म पयासन्ति।। 112|| सिरिकुम्मापुत्तचरि 23 : 22852585288888 २२-28 2200000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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