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भयवं जीवियमप्पं कहमवि तीरिज्जएभिवड्ढेउं।
तो कहइ केवली सो केवलकलिअत्थवित्थारो।। 50 ।। अर्थ : हे भगवन्! अल्प जीवन की संसार में वृद्धि करने के लिए किसी
तरह भी (कोई) समर्थ है ? तब केवलज्ञान से विकसित अर्थ के विस्तार को (जानने वाले) वे केवली (साधु) कहते हैं -
तित्थयरा य गणधरा चक्कधरा सबलवासुदेवा य ।।
अइबलिणो वि न सक्का काउं आउस्स संधाणं। 151 ।। अर्थ : तीर्थकर, गणधर, चक्रवर्ती, बलराम (भगवान् राम) तथा वासुदेव
(श्री कृष्ण) आदि अत्यधिक बलवान होने पर भी आयु को जोड़ने (वृद्धि) के लिए समर्थ नहीं है।
जम्बुद्दीवं छत्तं मेरुं दंडं पहू करेउं जे ।
देवा वि ते न सक्का काउं आउस्स संधाणं ।। 52|| अर्थ : जो प्रभू जम्बूद्वीप को छत्र (और) मेरु पर्वत को (उस छत्र का)
दण्ड करने के लिए (समर्थ हैं) वे देवता भी आयु को जोड़ने (वृद्धि) के लिए समर्थ नहीं हैं।
यदुक्तम् - नो विद्या न च भेषजं न च पिता नो बांधवा नो सुताः, नाभीष्टा कुलदेवता न जननी स्नेहानुबन्धान्बिता। नार्थो न स्वजनो न वा परिजनः शारीरिकं नो बलं,
नो शक्ताः सततं सुरासुरवराः संधातुमायुः क्षमाः ।। 53 ।। अर्थ : यह कहा गया है- न विद्या, न औषधि, न पिता, न मित्र, न पुत्र,
न पूज्य कुलदेवता, न स्नेह के बन्धन से बन्धी हुई माता, न धन -सम्पत्ति, न परिवार के व्यक्ति, न तो अन्य दूसरे व्यक्ति, न शारीरिक शक्ति और न हमेशा से शक्तिशाली देवता तथा दानव आदि आयु को जोड़ने या वृद्धि करने में समर्थ नहीं हैं।
इअ केवलिवयणाई सुणिउं अमरी विसण्णचित्ता सा। निअभवणं संपत्ता पणट्ठसव्वस्ससत्थ व्व।। 54 ।।
सिरिकुम्मापुत्तचरिअं
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