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आराधना प्रकरण
अनुवाद : जो मेरु पर्वत के समूह में पर्वतों के सदृश विविध प्रकार के भोगों को
तुम्हारे द्वारा भोग कर तृप्ति नहीं प्राप्त की जा सकी, उन चार प्रकार के आहारों (भोगों) का त्याग करो।
जो सुलहो जीवाणं, सुर-नर-तिरि-नरयगइ-चउक्केवि।
मुणिउं दुलहं' विरई, तं चयसु चउव्विहाहारं। 60॥ अन्वय : जो सुर-नर-तिरि-नरय चउक्के वि गइ जीवाणं सुलहो (तस्स) विरइं
दुल्लहं मुणिउं तं चउव्विहाहारं चयसु। अनुवाद : जो (भोजनादि विलास) सुर, नर, तिर्यक्, एवं नरकादि चारों गतियों के
जीवों को सुलभ हैं, जिसकी विरति (त्याग) दुर्लभ है। ऐसा जानकर उस चतुर्विध आहार का परित्याग करो।
छज्जीवनिकायवहो अकयंमि कहंपि जो न संभवइ।
भव - भमण - दुहाहारं, तं चयसु चउव्विहाहारं ॥ 61॥ अन्वय : छज्जीवनिकायवहो अकयंमि कहंपि जो संभवइ न (च) (जं) भव
भमण-दुहाहारं तं चउव्विहाहारं चयसु। अनुवाद : षड्जीवनिकाय का वध (आहार हेतु) नहीं किया और कभी भी संभव
नहीं है। (क्योंकि यह) भव-भ्रमण रूप दु:ख का आधार है, अतः चतुर्विध आहार का परित्याग करो।
चत्तंमि जम्मि जीवाण', होइ करयलगयं सुरिंदत्तं।
सिद्धसुहं' पि हु सुलहं, तं चयसु चउव्विहाहारं ॥ 62॥ अन्वय : जम्मि चत्तंमि जीवाण सुरिंदत्तं करयलगयं होइ (च) सिद्धसुहं पि हु सुलहं
तं चउब्विहाहारं चयसु। अनुवाद : जिसका परित्याग करने पर जीवों को इन्द्रत्व भी प्राप्त (हस्तगत) हो
जाता है (अर्थात् इन्द्रपद का सुख प्राप्त हो जाता है) और सिद्धसुख भी सुलभ हो जाता है, उस चतुर्विध आहार का परित्याग करो।
नाणाविहपावपरायणो वि, जं पाविऊण अवसाणे।
जीवो लहइ सुरत्तं, तं सुमरसु मणे नमुक्कारं ॥ 63॥ 1. (अ) दुल्लह (ब) दुलहं
2. (ब) विरयं 3. (ब) °वहे 4. (अ) जंम्मि
5. (अ) जीवाणं 6. (अ) करलगयं 7. (ब) सिद्धिसुहं
8. (अ) चयसु चयसु 9. (अ, ब) सुरसु
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