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________________ आराधना प्रकरण पुव्विं दुव्विन्नाणं, कम्माणं वेइआण जं मुक्खो । तं पुण' अ वेइआणं, इअ मुणिअं कुणसु सुहभावं ॥ 56 ॥ अन्वय : अ पुव्विं दुव्विन्नाणं वेइआण कम्माणं जं मुक्खो तं वेइआणं (कम्माणं) इअ पुण मुणिअं सुहभावं कुणसु । अनुवाद : पूर्व में अज्ञानतावशात् किए गए वेदनीय आदि कर्म जो मुक्त हो गए हैं, उन वेदनीय आदि कर्मों को इस प्रकार पुनः जानकर शुभभाव का आचरण करो । जं तुमए नरनारएण, दुक्खंति तिक्खिअं - तिक्खं । तत्तो अकित्तिअ' मित्तं, इअ मुणिअं कुणसु सुहभाव ॥ 57 ॥ अन्वय : जं नरनारएण तिक्खिअं तिक्खं दुक्खति तुमए तत्तो अकित्तिअ मित्तं इअ मुणिअं सुहभावं कुणसु । अनुवाद : नर-नारकों के द्वारा प्रदत्त तीक्ष्ण दुःखों को तुमने सहा, वे दुष्कृत करने वाले (अकृत्य) मित्र हैं, ऐसा समझकर शुभभाव (शत्रु में भी मैत्री) में आचरण करो । अन्वय जेण विणा चारित्तं, सुअं तवं दाणसील' अवि सव्वं । कासकुसुमं व विहलं, इअ मुणिअं कुणसु सुहभावं ॥ 58 ॥ : जेण विणा चारित्तं सुअं तवं दाणसील अवि सव्वं कासकुसुमं व विहलं इअ मुणिअं सुहभावं कुणसु । अनुवाद : जिस के बिना (मैत्री पूर्ण शुभाचरण के बिना) चारित्र श्रुत (सिद्धान्त), तप, दान और शील सभी कासकुसुम की भांति विफल हो जाते हैं, ऐसा जानकर शुभभाव (शुभाचरण) करो । जं भुंजिऊण बहुहा, सुरसेल समूह' पव्वएहिंतो " | तित्ती तए न पत्ता", तं चयसु चउव्विहाहारं ॥ 59 ॥ अन्वय : जं सुरसेलसमूह पव्वएहिंतो बहुहा भुंजिऊण तए तित्ती न पत्ता तं चउव्विहाहारं चयसु । 1. (ब) न 4. (ब) कित्तिअ 7. (अ) भजीऊण 10. (अ) पव्वहिंएहिंतो 45 Jain Education International 2. (ब) पुणो 5. (अ) विणाविणा 8. (अ) बऊहा 11. (अ) पत्तो For Private & Personal Use Only 3. (ब) तिक्खिअं ति 6. (अ) शीलं 9. (ब) पमुह www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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