________________
प्रकाशकीय
जैन अध्ययन एवं सिद्धान्त शोध संस्थान, प्राच्यविद्याओं की अकादमिक गतिविधियों के प्रोत्साहन और उन्हें संरक्षण-संवर्द्धन प्रदान करने वाला एक समर्पित संस्थान है। जैन धर्म-दर्शन, इतिहास, संस्कृति तथा प्राकृत साहित्य, भाषा, व्याकरण आदि विधाओं के अनुसंधान के साथ-साथ तत्सम्बन्धित साहित्य का प्रकाशन करना भी संस्थान का एक विशिष्ट उद्देश्य है।
संस्थान ने प्रथमतः प्राकृत एवं जैनविद्या की प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के सम्पादन और उनके प्रकाशन का कार्य अपने हाथों लिया है। प्रस्तुत रचना संस्थान की प्रथम प्रकाशित कृति है। 'प्रथम पुष्प' के रूप में इस पुस्तक को प्रकाशित कर संस्थान स्वयं गौरवान्वित हो रहा है।
जैन विश्वभारती संस्थान में प्राकृत एवं जैनागम विभाग के वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. जिनेन्द्र जैन एवं शोध-छात्र श्री सत्यनारायण भारद्वाज द्वारा सम्पादित एवं अनुवादित कृति 'आराधना प्रकरण' (श्री सोमसूरि विरचित) प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इस लघु ग्रन्थ में आचरणीय बिन्दुओं को रेखांकित किया गया है। चतुःशरणभूत तत्त्वों का चिंतवन, अयतना एवं असातना का परित्याग और पुण्य रूप कृत-कार्यों की अनुमोदना आदि आचार धर्म के विविध पक्षों को ग्रन्थ में उद्घाटित कर उनकी महत्ता और उपयोगिता को सिद्ध किया गया है। . संस्थान सम्पादकद्वय के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कृति को समाज के सुधी पाठक गणों के हाथों में सौंपते हुए हर्ष का अनुभव करता है। संस्थान सदैव प्रयासरत है कि इस तरह के साहित्य-प्रकाशन से समाज को लाभान्वित करता रहे।
अक्षयतृतीया 15 मई, 2002
मंत्री जैन अध्ययन एवं सिद्धान्त शोध संस्थान
जबलपुर (म.प्र.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org