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________________ आराधना प्रकरण 19 छन्द मनुष्य अनादिकाल से छन्द का आश्रय लेकर अपने ज्ञान को स्थायी और अन्यजन ग्राही बनाने का प्रयत्न करता आ रहा है। मनुष्य को मनुष्य के प्रति संवेदनशील बनाने का सबसे प्रधान साधन छन्द है। छन्द लय, स्वर और मात्राओं से युक्त शाब्दिक अभिव्यक्ति है, जो मनोरम, हृदयाकर्षक तथा प्रभावक होती है। सुश्राव्य तथा सुगठित पदों और मात्राओं का उचित सन्निवेश एवं जिसमें गेयात्मकता की सहज उपस्थिति हो उसे छन्द कहते हैं। सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, राग-द्वेष, संयोग-वियोग, करुणा-घृणा आदि रागात्मक प्रवृत्तियाँ अनुभव में आकर समाप्त हो जाती हैं, लेकिन इनका संस्कार अवचेतन मन पर स्थिर रहता है। किसी बाह्य या आभ्यन्तर कारण वशात् जब अनुभूतियाँ अवचेतन मन को उद्वेलित कर व्यवहार मन पर अधिकार जमाती हुई बाह्य शब्दाभिव्यंजना को प्राप्त होती हैं, उसे छन्द कहते हैं। जिस प्रकार भवन बनाने से पूर्व उसका रेखाचित्र बना लिया जाता है उसी प्रकार कविता में सन्तुलन व प्रेषणीयता लाने के लिए छन्द की आवश्यकता है। काव्य के क्षेत्र में छन्द का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पाणिनि ने छन्द को वेद का पाद कहा है। वाचस्पत्यम् (पृ. 2979) में अंकित है - "छन्दः पादौ तु वेदस्य। छन्दात्मक साहित्य सामान्य साहित्य से विशिष्ट होता है, क्योंकि छन्द से सहजतया चेतना जागृत होती है, चिन्मयत्व का विस्तार होता है,परम सुख की उपलब्धि होती है और सद्य (दुःख) मुक्ति की घटना घटित होती है। संसार या संसारेतर ऐसी कौन सी वस्तु है, जो साहित्य से प्राप्त नहीं हो सके ? आ. मम्मट ने इसकी महत्ता का निर्देश किया है काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये। सद्यः परनिवृतये कातासम्मिततयोपदेश युजे॥(काव्यप्रकाश 1/2) अर्थात् -- काव्य से यश की प्राप्ति, धनलाभ, सामाजिक व्यवहार की शिक्षा, रोगादि विपत्तियों का विनाश, आनन्द की प्राप्ति तथा प्रियतमा के समान मनभावन उपदेश की प्राप्ति होती है। यहाँ यह कहने में कोई अत्युक्ति नहीं है कि साहित्य में छन्द के समावेश से 1. शिक्षाग्रन्थ (वेदांग) 31/7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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