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________________ 17 आराधना प्रकरण किया गया है। साधक चाहे ध्यान में लीन हो, व्रत आदि की साधना में लगा हुआ हो, आभ्यन्तर एवं बाह्य तपों का पालन कर रहा हो अथवा कषायों के शमन, योग की प्रवृत्ति आदि विभिन्न क्रियाओं में आराधना का विवेचन किया गया है। आराधना विषयक साहित्य में भगवती आराधना, मूलाचार, प्रकीर्णक साहित्य (आतुर प्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, मरण समाधि) समवायांग आदि प्रमुख ग्रंथ हैं। भगवती आराधना पर लिखा गया टीकासाहित्य भी इस परंपरा के प्रमुख ग्रंथ हैं। अमितगतिकृत संस्कृत पद्यबद्ध आराधना ग्रंथ, देवसेनकृत आराधनासार, पं. आशाधरकृत आराधना, अपराजितसूरिकृत विजयोदया टीका तथा अज्ञातकृत प्राकृत आराधना विषयक ग्रंथ, वि.सं. 1078 में वीरभद्र द्वारा आराधना पताका एवं अभयदेवसूरिकृत आराधना कुलक प्रमुख ग्रंथ कहे गये हैं। आराधना के विषय को विवेचित करने वाले इन ग्रंथों के अतिरिक्त पश्चात्वर्ती आचार्यों ने स्वतन्त्र रूप से ग्रंथों का प्रणयन किया है। जिनमें आराधना प्रकरण प्रमुख है। सोमसूरि द्वारा रचित यह आराधना प्रकरण ग्रंथ सम्यक्त्व की आराधना को विशेष रूप से व्याख्यायित करता है। काव्यशास्त्रीय मीमांसा रस शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। जैसे - सारभूत द्रव्य, वनस्पतियों के रस आदि अर्थों में रस का प्रयोग हुआ है। रस शब्द 'रस्यतेआस्वाद्यते" इस व्युत्पत्ति से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है आस्वाद्यमान या जिसका आस्वादन किया जा सके। काव्यशास्त्र में रस शब्द का प्रयोग भंगारादि रसों के अर्थ को व्यक्त करता है। अभिप्राय यह है कि जिसके द्वारा भावों का आस्वादन हो, वह रस है। पं. विश्वनाथ ने अपनी कृति साहित्य दर्पण में रस की अत्यन्त सरल परिभाषा देकर बताया है कि भावों की परिपक्वावस्था को रस कहते हैं। इनके विचार से जब विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के द्वारा सहृदयों के हृदय में वासना-रूप में स्थित स्थायी भाव पूर्ण परिपक्वावस्था को प्राप्त हो जाये, तो उसको रस कहते हैं ! कहा गया है - विभावेनानुभावेन व्यक्तः संचारिणा तथा। रसतामेति रत्वादिः स्थायी भावः सचेतसाम्॥ (साहित्यदर्पण,3/1) 1. वाचस्पत्यम् (बृहत् संस्कृताभिधानम्) श्री तारानाथतर्क वाचस्पति, भट्टाचार्य पृ. 4794) प्रकाशक-चौखम्बा संग सीरीज आफिस, वाराणसी। 1970 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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