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________________ 14 आराधना प्रकरण - प्रकाशन करना, उनको परिणमित करना, उन्हें दृढ़ता पूर्वक धारण करना, उनके पालन में गति मन्द पड़ जाने पर पुनः पुनः जाग्रत करना और आमरण सहित अनेक भवों में चारों का पालन करना ही आराधना है । हम आराधना के इस स्वरूप की मीमांसा करते हुए कह सकते हैं कि यदि यावत् जीवन धर्म साधना और यथाख्यात चारित्र का पालन आदि किया जाता है तो आराधना फलीभूत होती है । द्रव्यसंग्रह की टीका' में ध्यानस्थ आत्मा की चर्चा करते हुए कहा गया है कि इन चारों आराधनाओं का निवास स्थान आत्मा को माना गया है। अतः दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप की आराधना करना ही आत्मा में विचरण करना है । आराधना के चार भेदों का संक्षेपीकरण भी आचार्यों ने किया है। रत्नकरण्डश्रावकाचार±, अनगार धर्मामृत' तथा भगवतीसूत्र' में दर्शन ज्ञान और चारित्र इन तीन भेदों का उल्लेख मिलता है। शिवार्य ने भगवती आराधना में चार भेद बताकर संक्षेप से दर्शन और चारित्र ये दो भेद कर दिये। इसी प्रकार चारित्र आराधना रूप एक भेद बताते हुए शेष तीनों को चारित्र में समाहित कर बतया कि दर्शन, ज्ञान और तप की आराधना चारित्र की आराधना से स्वतः पालित हो जाती है।' इस प्रकार इन आराधनाओं का पालन जहाँ आचारशास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, वहीं मोक्ष प्राप्ति के लिए अनिवार्य भी है। आराधना चाहे दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप की हो या संयम, धर्म, श्रुत, सुख आदि की, जीवन में वह अनिवार्य है । श्रुत आराधना का फल बताते हुए उत्तराध्ययन सूत्र' में कहा गया है कि श्रुत की आराधना से अज्ञान को क्षय और राग-द्वेष आदि से उत्पन्न होने वाले मानसिक संक्लेशों को दूर किया जा सकता है। धर्म आराधना प्रति समय और प्रत्येक क्षेत्र में पालित की जा सकती है । आचारांग सूत्र में आचार धर्म में आराधना का आधार विवेक बताते हुए कहा गया है कि यदि विवेक है तो गाँव अथवा जंगल में भी इसका पालन संभव है । धर्म आराधक के लिए शेष धर्मों को छोड़कर इस लोक में कहे हुए अनुसार धर्म को ग्रहण करने का निर्देश दिया गया है 1 1. द्रव्यसंग्रह टीका (ब्रह्मदेवकृत) गाथा - 56 2. रत्नकरण्ड श्रावकाचार (समन्तभद्र ) 1/31 3. अनगार धर्मामृत (आशाधर) ज्ञानदीपिका टीका, श्लोक, 91 4. भगवतीसूत्र - 8/10/451 5. भगवती आराधना 2,3 6. भगवती आराधना ( शिवार्य) गाथा, 8 7. उत्तराध्ययन सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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